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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
रुपाई' अंकित है। आचार्य श्री लकड़ी के सिंहासन पर विराजमान हैं, उनके समक्ष साध्वी जी भी एक चौरंग (चौकी) पर स्थित हैं। इससे प्रतीत होता है कि यह प्रवर्तिनी साध्वी होंगी। शेष दो साध्वियाँ क्रमश: एक-दूसरी के पीछे वज्रासन से बैठी हैं। तीनों का एक हाथ मुखवस्त्रिका सहित ऊपर है और बांया हाथ घुटने पर है। आचार्य एवं प्रमुखा साध्वी के मध्य स्थापनाचार्य है। प्रमुखा साध्वी आचार्य के वचनों को गंभीरतापूर्वक श्रवण करती दिखाई दे रही हैं, शेष दोनों साध्वियाँ भी प्रसन्न मुद्रा में आचार्य के वचनों को सुन रही है। चित्र भावपूर्ण एवं प्राचीन है।
साध्वी सरस्वती का प्राचीन चित्रांकन ( 16वीं सदी के लगभग ) 301
चित्र 23
आर्य कालक द्वारा गर्दभिल्ल राजा से अपहृत साध्वी सरस्वती को मुक्त करने की घटना को चित्रकार ने चार भागों में विभाजित किया है। इस चित्र के प्रथम भाग में आर्य कालक अपने शिष्य एवं भक्त श्रावकों को धर्मोपदेश दे रहे हैं। नीचे के भाग में दो श्रमणियाँ भक्त श्राविकाओं को धर्मोपदेश दे रही हैं। चित्र अत्यन्त भावपूर्ण एवं आकर्षक है। कालक कथा की अनेक प्रतियों में ऐसे चित्र मिलते हैं।
301. समय की परतों में, साध्वी शिलापी, पृ. 55.
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