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________________ पूर्व पीठिका आर्यिका का प्राचीन चित्र-94 चित्र 17 प्रस्तुत चित्र मस्तयोगी श्री ज्ञानसागर जी तथा वाचक श्री जयकीर्ति का है। उनके पीछे की ओर जो चित्र है, वह कौन है इसका यद्यपि कोई उल्लेख नहीं हुआ है तथापि श्वेत वस्त्र, ढका हुआ सिर और नारी आकृति से वह किसी श्रमणी का चित्र प्रतीत होता है। यह चित्र सेठ शंकरदान नाहटा कलाभवन बीकानेर में संग्रहित है। आर्य स्थूलभद्र एवं यक्षादि सात साध्वी भगिनियाँ चित्र में ऊपर व नीचे दो भाग हैं ऊपर के चित्र में आर्य स्थूलभद्र | अपनी बहनों को विद्या का चमत्कार दिखाने के लिये द्विदंती और पराक्रमी सिंह का रूप बनाकर बैठे हैं, साध्वी बहनें सिंह के रूप को देखकर विस्मित हैं। नीचे के चित्र में स्थूलभद्र का साधु रूप दर्शाया गया है उनके समक्ष स्थापनाचार्य है। इस संपूर्ण चित्र में साधु तथा साध्वियों का वेश अन्य चित्रों की अपेक्षा बिल्कुल भिन्न है, जो बौद्ध साधुओं के समान प्रतीत होता है प्रत्येक साध्वी के मस्तक के पीछे भामंडल (श्वेत गोल आकृति) है, जो बौद्ध भिक्षुओं के प्राचीन चित्रों में दिव्यतेज दर्शाने के लिये दिखाया जाता है। चित्र संवत् विहीन होने पर भी लगभग 15वीं 16वीं शती का है, ऐसे चित्र सचित्र कल्पसूत्र की अनेक प्रतियों में पाये जाते हैं। चित्र 18 294. श्री भंवरलाल नाहटा अभिनंदन ग्रंथ, पृ. 126. 295. जैन चित्र कल्पद्रुम, पृ. 167, चित्र-197. Jain Education International For Pa77ersonal use only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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