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पूर्व पीठिका राज्ञी राजमत (-ती) (14वीं शताब्दी)
राताराऊमत
चित्र 14 यह खंडित मूर्ति भद्रेश्वर तीर्थ (कच्छ-गुजरात) के नये मंदिर के फाउण्डेशन के लिये खुदाई करने पर नींव के गड्ढे में से अन्य जिनमूर्तियाँ एवं गुरूमूर्तियों के साथ निकली है। हमें इस मूर्ति का चित्र एवं ज्ञातव्य उपाध्याय श्री भुवनचंद्र जी महाराज द्वारा प्राप्त हुआ है, जो 'अनुसंधान' में भी प्रकाशित हुआ है, करवाया है। साध्वी का नाम 'राज्ञी राजमत' (-ती?) साफ-साफ खुदा है। यह मूर्ति साध्वी की है, मस्तक के पीछे रजोहरण स्पष्ट बताया गया है। दोनों ओर श्राविकाएँ संभवतः साध्वी शिष्याएँ सेवारत दिखाई गई हैं। राजमती कोई 'रानी' होनी चाहिये, दीक्षा के पश्चात् भी उनकी रानी की पहचान कायम रही होगी, यह टिप्पणी अनुसंधान के संपादक आचार्य शीलचन्द्रसूरि ने की है। मूर्ति लेख रहित है, तथापि अन्य प्रतिमाओं पर लिखित लेखों से यह 14वीं शताब्दी की संभावित है।9।
291. आचार्य शीलचंद्रसूरि, संपा. अनुसंधान (32), पृ. 88, अहमदाबाद, 2005 ई.
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