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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास भट्टारक विद्यानन्दि (प्रथम) एवं दो आर्यिकाएँ (सं. 1411-1537)90 ___ प्रस्तुत चित्र भट्टारक-संप्रदाय नामक ग्रंथ में प्रकाशित हुआ है चित्र भट्टारक विद्यानन्दि (प्रथम) का है जो बलात्कारगण, सूरत शाखा से संबंधित है। आचार्य के समक्ष स्थापनाचार्य है। सामने की ओर दो आर्यिकाएँ स्थित हैं, दो श्रावक एवं दो, श्राविकाएँ भी हैं, ये सभी आचार्य के उपदेश को ध्यानपूर्वक श्रवण करते दिखाई दे रहे हैं, चित्र के नीचे सं. 1411-1537 का लेख अंकित है। चित्र 12 महासती राजीमति की मूर्ति (13वीं 14वीं सदी)291 यह प्रतिमा गिरनारतीर्थ पर स्थित एक गुफा जो 'सती राजुल की गुफा' के नाम से प्रसिद्ध है; उसमें उत्कीर्ण है, ऊपर 'जय सती' लिखा हुआ है। महासती राजीमति का विस्तृत परिचय अध्याय दो में अंकित है। मूर्ति वस्त्राभूषण युक्त है, अतः यह राजीमति के गृहस्थ रूप का अंकन है। चित्र 13 290. डॉ. जोहरापुरकर भट्टारक-संप्रदाय, पृ. 198. 291. विश्वप्रसिद्ध जैन तीर्थ, महो. ललितसागर कलकत्ता, ई. 1995-96 74 For Prim Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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