________________
पूर्व पीठिका महत्तरा प्रवर्तिनी आर्या पद्मसिरि जी की प्रतिमा (संवत् 1298)287
साध्वी जी की यह मूर्ति अपने मस्तक पर स्थित स्वआराध्य जिन प्रतिमा को नमस्कार करती हुई भद्रासन पर . प्रवचन मुद्रा में हाथ जोड़कर बैठी हो, इस प्रकार के भाव प्रदर्शित करती प्रतीत होती है। यह सवस्त्र है। उसके बांयी ओर रजोहरण है, बांये हाथ की कोहनी से नीचे लटकता वस्त्र का किनारा दिखाई पड़ता है। ___जनता की अज्ञानता के कारण मातर तीर्थ की इस मूर्ति के विषय में वर्षों तक लोगों की यह धारणा थी, कि श्री गौतमस्वामी जी ने भगवान महावीर को मस्तक के ऊपर धारण किया हुआ है, किंतु मुनिवर यशोविजय जी ने जब इस प्रतिमा जी को बाजु में से उठवाकर सन्मुख रखवाया तो उसके नीचे शिलालेख पर वि. सं. 1298 का उल्लेख और 'आर्या पद्मसिरि' नाम अंकित था। यह मूर्ति गुजरात में 'खेड़ा' के पास 'मातर तीर्थ' की है। आर्या पद्मसिरि का व्यक्तित्व परिचय अध्याय 5 में पर दिया गया है।
दिगम्बर आर्यिका जिनमती की प्रतिमा (संवत् 1544 )288
___ यह मूर्ति दिगम्बर आर्यिका जिनमती की सूरत में है, इसका चित्र 'भट्टारक संप्रदाय' नामक ग्रंथ में प्रकाशित हुआ है। आर्यिका की मूर्ति पर संवत् 1544 वैशाख शुक्ला 3 का अभिलेख भी है। इसका परिचय हमने अध्याय चार में दिया है।
प्रस्तुत मूर्ति का शिल्प विन्यास श्वेताम्बर साध्वियों की मूर्तियों से भिन्न प्रकार का है। मूर्ति के एक हाथ में माला है और दूसरे हाथ में मयूर-पिच्छ। कमर के नीचे साड़ी पहनी हुई है। और स्तनों पर एक वस्त्रखंड कसके बांधा हुआ है। आर्यिका की मूर्ति के दोनों हाथों के नीचे दोनों ओर दो मूर्तियाँ हैं। जो सम्भवतः उनकी शिष्याओं की होंगी। ये मूर्तियाँ श्वेताम्बर गुरु-मूर्तियों की तरह ही हैं।289
सकारचन्दाबविणीमल कलावनानकार रामनारकावदाने
स्वारनहिनशा श्रीमान प्रज्ञानयात्रासदाशवयापमान Hindi
चित्र 11
287. मुनि श्री यशोविजय जी, आचार्य विजयवल्लभसूरि स्मारक ग्रंथ, पृ. 173. 288. डॉ. जोहरापुरकर, भट्टारक-संप्रदाय, पृ. 195. 289. श्रमण अंक 12 ई. 1959 पृ. 32. श्री अगरचंद नाहटा का लेख-दिगंबर आर्यिका जिनमती की मूर्ति
73 For Privbe
Jain Education International
rsonal Use Only
www.jainelibrary.org