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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास 1.21 जैन कला एवं स्थापत्य में श्रमणी-दर्शन कला एवं स्थापत्य को संरक्षण प्रदान करने में जैनों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। जैन स्थापत्य का प्राचीनतम रूप मौर्यकाल में लोहानीपुर-पटना से संबंधित है। इसके पश्चात् खारवेल (ई. पू. द्वितीय शती) हत्थीगुफा से और तत्पश्चात् मथुरा के देवनिर्मित स्तूप (ईसा पूर्व प्रथम शती से ईसा की 10वीं शती तक) से सम्बन्धित है। मथुरा का जो स्थापत्य है उसमें साध्वियों के अनेक अंकन उपलब्ध हैं। इसी प्रकार जैन काष्ठकला, चित्रकला में भी श्रमणियों के अंकन मिलते हैं। शास्त्रों की लघु चित्रकारी युक्त सजावट की शैली 12वीं शती के प्रारम्भ में गुजरात तथा राजस्थान में विकसित हुई। इस शैली का सबसे प्राचीन नमूना ताड़पत्र पर अंकित निशीथचूर्णि में प्राप्त होता है, जो सन् 1100 का है। ज्ञाताधर्मकथा की ताड़पत्रीय हस्तप्रति में प्राप्त सन् 1127 के दो चित्र अधिक महत्वपूर्ण हैं। वैसे 14वीं और 15वीं शती के ताड़पत्र अथवा कागज पर बने कल्पसूत्र और ज्ञाताधर्मकथा से संबंधित चित्र सबसे अच्छे हैं। सचित्र कल्पसूत्र की प्रतियों में ब्राह्मी-सुन्दरी तथा स्थूलभद्र की बहनों के साध्वी रूप में कई चित्र मिलते हैं। जैन आचार्यों के पास प्रेषित किये जाने वाले विज्ञप्ति-पत्र जो सुन्दर बेल-बूटों एवं चित्रकारी से सुसज्जित कर आमंत्रण-पत्र के रूप में भेजे जाते हैं, इसका सबसे पुराना नमूना विक्रम संवत् प्रथम द्वितीय शताब्दी का राजा शालिवाहन द्वारा प्रसारित है जिसमें तीन साध्वियों के आकर्षक चित्र हैं। इस प्रकार जैन कला और स्थापत्य के सभी रूपों में जैन श्रमणियों के अंकन और चित्र उपलब्ध हैं, जिन्हें यहाँ विवरण सहित दिया जा रहा है। जैन श्रमणी-दर्शन (ईसा की 15-16वीं शताब्दी) चित्र 1 * राजा शालिवाहन द्वारा प्रसारित विज्ञप्ति-पत्र में चित्रित साध्वियाँ 64 For Privaledonal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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