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पूर्व पीठिका
श्रमणियों की चरण पादुकाओं के उल्लेख हमें 17वीं सदी से विपुल परिमाण में प्राप्त हुए हैं, उससे पूर्व उत्तरप्रदेश के अलमोड़ा जिले के द्वारहट स्थान पर एक चरण-पादुका संवत् 1044 की उत्कीर्ण है, उसके शिलालेख पर संस्कृत-नागरी भाषा में “देवश्री की शिष्या अर्जिका ललित श्री" का नाम अंकित है।76 इसी प्रकार काष्ठा संघ माथुर गच्छ के भट्टारक सहस्रकीर्ति की शिष्या आर्यिका प्रतापश्री का नाम भी सं. 1688 की चरण पादुका में उपलब्ध होता है-77, किंतु ये चरण-पादुकाएँ आर्यिका की है अथवा आर्यिका द्वारा निर्मापित है, यह स्पष्ट नहीं होता। इसके अतिरिक्त किसी भी दिगंबर या यापनीय-परम्परा में साध्वी के चरण-चिह्मों की स्थापना का उल्लेख उपलब्ध नहीं होता।
श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्रमणियों के चरण युगल का इतिहास 400 वर्षों से अद्यतन काल तक चला आ रहा है। बाबू पूरणचन्द्र नाहर ने तथा नाहटा अगरचंद जी ने ऐसी अनेक श्रमणियों की चरण-पादुकाओं का उल्लेख अपने लेखों में किया है। यहाँ यह बात विशेष ज्ञातव्य है कि ये श्रमणियाँ जिनकी चरण-पादुकाएँ हैं, अथवा जिन्होंने चरण-पादुका निर्मित करने की प्रेरणा दी है, वे प्रायः खरतरगच्छ की हैं। वर्तमान में भी उमेदश्री, नवल श्री जी, जसुजी अमराजी, जयवंतश्रीजी आदि अनेक बृहत्खरतरगच्छीय परम्परा की साध्वियाँ हैं, जिनके चरण-युगल प्रस्थापित हैं।
276. जैन शिलालेख संग्रह भाग 5, पृ. 22 277. डॉ. वि. जोहरापूरकर, भट्टारक-संप्रदाय, पृ. 234
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