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पूर्व पीठिका
1.20.2.3 देवगढ़ के अभिलेख
भारतीय कला के इतिहास में उत्तरप्रदेश के ललितपुर जिले में स्थित देवगढ़ का भी अपना विशिष्ट स्थान है। यहाँ लगभग 7वीं शती ई. से जैन मंदिरों का निर्माण प्रारम्भ हुआ उनमें लगभग 300 छोटे-बड़े अभिलेख मिले हैं। जिसमें 50 अभिलेख तिथियुक्त हैं। देवगढ़ के जैन स्मारक एवं मूर्तियों के लेखों में प्राचीनतम अभिलेख, मंदिर संख्या 12 का संवत् 919 का एवं नवीनतम लेख संवत् 1995 का है। इसके प्रारम्भिक अभिलेख ब्राह्मी लिपि में और बाद के लेख नागरी लिपि में लिखे हैं, इनकी भाषा प्रारम्भ में संस्कृत है किंतु बाद के कुछ लेखों में कभी-कभी अपभ्रंश तथा हिंदी भाषा का भी व्यवहार हुआ है | 262
देवगढ़ के मंदिरों में ऐसी कई मूर्तियाँ हैं जिनके शिलालेखों में आर्यिकाओं के अभिलेख हैं। आर्यिका इन्दुआ (सं. 1095) आर्यिका लवण श्री (सं. 1135) आर्यिका धर्मश्री (सं. 1208) आर्यिका नवासी (सं. 1207 ) आदि अनेकों आर्यिकाओं ने गृहस्थ श्राविकाओं को प्रेरित कर मूर्तियाँ प्रतिष्ठापित करवाईं। इन आर्यिकाओं के अभिलेख इस बात के प्रमाण हैं कि आचार्य, उपाध्याय एवं साधुओं के समान आर्यिकाएँ भी धार्मिक एवं कलात्मक गतिविधियों में अपना पूर्ण योगदान देती थीं।
1.20.2.4 मध्यप्रदेश के अभिलेख
मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ जिले में 'अहार' क्षेत्र पर तथा इसके निकटवर्ती भूभाग पर पुरातत्त्व सामग्री विपुल परिमाण में उपलब्ध होती है। यहाँ भूगर्भ से तथा बाहर अनेक खंडित अखंडित जैन मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं, अनेक मूर्तियों की चरण चौंकी पर लेख अंकित हैं। इन मूर्ति लेखों में भट्टारकों के साथ या स्वतन्त्र रूप से कुछ आर्यिकाओं के नामों का भी उल्लेख मिलता है। जैसे- ज्ञानश्री, जयश्री, त्रिभुवनश्री, लक्ष्मीश्री, चारित्रश्री, रत्नश्री, शिवश्री आदि । 263
इन अभिलेखों से एक और भी तथ्य पर प्रकाश पड़ता है कि आर्यिकाओं ने भट्टारकों के साथ अथवा स्वतन्त्र रूप से भी मूर्तियों की प्रतिष्ठा करायी। कई आर्यिकाओं के साथ 'सिद्धान्ती' जैसे पाण्डित्य सूचक विशेषण भी लगे हुए हैं। इससे यह प्रकट होता है कि ये आर्यिकाएँ परम विदुषी विधि-विधान में निष्णात और सिद्धान्त शास्त्रों की मर्मज्ञा थीं। प्रतिष्ठा कराने वाली इन आर्यिकाओं का नामोल्लेख 12वीं शताब्दी की मूर्तियों के लेखों में मिलता है, बाद के मूर्तिलेखों में नहीं। 'खजुराओ', जो चन्देल शासकों की देन है; वहाँ से भी आर्यिकाओं के कुछ लेख प्राप्त होते हैं।
मध्यभारत में महोवा, देवगढ़ अहार, मदनपुर, बाणपुर, जतारा, रायपुर जबलपुर, सतना, नवागढ़, ग्वालियर, भिलसा, भोजपुर, मऊ, धारा, बड़वानी और उज्जैन आदि भी पुरातत्त्व सामग्री के केन्द्रस्थान हैं 264, किंतु श्रमणियों के अंकन में सभी मौन हैं।
262. वि. गार्गीय, " जैन कला तीर्थ देवगढ़', पृ. 146
263. जयंतिलाल पारख, मध्य प्रदेश के दिगंबर जैन तीर्थ, चेदि जनपद, पृ. 92
265.
264. परमानन्द जैन, मध्यभारत का जैन पुरातत्त्व, दृष्टव्य - मुनि श्री हजारीमल स्मृति ग्रंथ अध्याय तीन, पृ. 699 जैन शिलालेख संग्रह, भाग 1, लेख सं. 28, 460, 113, 05, 113, 10, 02, 240, 27, 139, 207, 35, 19, 227, 113, भाग 2, ले. सं. 185
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