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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास कुछ सूचियाँ प्रकाश में आई भी हैं जैसे- राजस्थानी हस्तलिखित ग्रंथ सूची 1 से 8 भाग, इस विशालकाय सूची में मात्र 33 श्रमणियों के नामोल्लेख प्राप्त हुए हैं। इसके अतिरिक्त श्री चतुरविजयजी के प्रमुख निर्देशन में आगमोदय समिति मुंबई ने 'लींबड़ी ज्ञान मंदिर के हस्तलिखित ग्रंथों की सूची प्रकाशित की है। के. भुजबल शास्त्री ने भारतीय ज्ञानपीठ काशी से 'कन्नड़ प्रान्तीय ताड़ग्रंथ सूची' प्रकाशित की है, उक्त सूचियों में प्रतिलिपिकर्त्ताओं का नाम देने की आवश्यकता ही नहीं समझी। हस्तलिखित ग्रंथों का सर्वेक्षण करते समय यदि इस ओर भी ध्यान दिया जाता तो श्रमणियों के क्रमबद्ध इतिहास में वे अत्यंत उपयोगी सिद्ध होतीं । 1.20.1.6 ग्रंथ - प्रशस्ति प्रशस्तियों की महत्ता एवं उपयोगिता अभिलेखों के सदृश हैं, मध्यकाल में आठवीं-नौवीं शताब्दी से ही प्रशस्तियाँ लिखी जाने लगी थीं, उनमें जो सुरक्षित रह पाई हैं, वे जैन इतिहास के पुनर्निर्माण में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण स्रोत सिद्ध हुई हैं। अनेक इतिहास प्रेमी विद्वानों, आचार्यों ने हस्तलिखित ग्रंथों की प्रशस्तियों का संग्रह किया है, उनसे श्रमणियों के विषय में महत्त्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध होती है। इनमें प्रमुख रूप 'मुनि जिनविजयजी द्वारा संग्रहित 'जैन पुस्तक प्रशस्ति संग्रह, जुगलकिशोरजी मुख्तार की 'जैन ग्रंथ प्रशस्ति संग्रह' गंगवाल की 'प्रशस्ति-संग्रह' श्री कमल कुमार जैन की 'जिनमूर्ति प्रशस्ति लेख', अमृतलाल मगनलाल शाह की 'प्रशस्ति संग्रह' आदि मुख्य हैं। संवत् 1192 में चैत्यवासी ब्रह्माणगच्छ से संबंधित साध्वी लक्ष्मी को 'नवपदप्रकरण' की प्रति समर्पित किये जाने का उल्लेख एवं अन्य भी महत्त्वपूर्ण दुर्लभ जानकारी 'जैन पुस्तक प्रशस्ति संग्रह' में दी गई है। श्री अमृतलाल मगनलाल शाह ने भी प्राचीन ताड़पत्रीय प्रतियों की उल्लेखनीय प्रशस्तियाँ 'जगसुंदरगणिनी (सं. 1265 ) ललितसुंदरगणिनी (सं. 1313) आदि श्रमणियों को ग्रंथ प्रदान विषयक जानकारी दी है। 254 जैसलमेर के प्राचीन ग्रंथ भंडार की सूची में 'जगमतगणिनी' की ताड़पत्र की प्रति में सं. 1300 के लगभग की प्रशस्ति उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व की परिचायक है। 255 प्रशस्ति-संग्रह एवं पांडुलिपियों के अतिरिक्त इतिहासविज्ञ विद्वानों ने भी अपने ग्रंथों में श्रमणी विषयक महत्त्वपूर्ण तथ्य प्रकाशित किये हैं, इसमें प्रमुख ग्रंथ हैं - मोहनलाल दलीचंद देसाई की 'जैन गुर्जर कविओ' भाग 1 से 5 इसमें विभिन्न साहित्य भंडारों में उपलब्ध हस्तलिखित ग्रन्थ एवं उसका संपूर्ण विवरण दिया गया है, अनेक आर्याओं का उल्लेख उनकी प्रशस्तियों में उपलब्ध होता है। वाराणसी से प्रकाशित 'जैन साहित्य का बृहद् इतिहास' भाग 1 से 7 में भी विद्वानों ने अथक परिश्रम कर खोजपूर्ण सामग्री प्रस्तुत की है। नाहटा जी का 'ऐतिहासिक काव्य संग्रह' जैन ऐतिहासिक गुर्जर काव्य संचय' भी श्रमणियों का इतिहास जानने में उपयोगी सिद्ध हुआ है। 1.20.1.7 विज्ञप्ति-पत्र - जैन आचार्यों के पास चातुर्मासिक विनंती हेतु जो आमंत्रण-पत्र प्रेषित किये जाते थे उन्हें 'विज्ञप्ति पत्र' कहा जाता था । ये विज्ञप्ति - पत्र संतों के प्रति श्रद्धा भावना के द्योतक होते थे। ऐसे विज्ञप्ति - पत्र सुंदर बेल-बूटों एवं चित्रकारी से सुसज्जित कर कई फुट लंबे कागज या कपड़े पर लिखे हुए होते थे। विज्ञप्ति - पत्र का सबसे प्राचीन नमूना ईसा की 17वीं शती का उपलब्ध होता है । 256 254. श्री प्रशस्ति संग्रह पृ. 6 255. जैसलमेर ग्रंथ भंडारों की सूची, परिशिष्ट 13, पृ. क्र. 592 256. डॉ. मोहनलाल मेहता, जैनधर्म दर्शन, पृ. 616 Jain Education International 56 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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