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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास 1.18 जैन श्रमणियों के सत्तावीस गुण समवायांग सूत्र में श्रमण-श्रमणियों के 27 गुणों का वर्णन है-(1) प्राणातिपात विरमण (2) मृषावाद विरमण (3) अदत्तादान विरमण (4) मैथुन विरमण (5) परिग्रह विरमण (6) श्रोत्रेन्द्रिय-निग्रह (7) चक्षुरिन्द्रिय-निग्रह (8) घ्राणेन्द्रिय-निग्रह (9) जिह्वेन्द्रिय-निग्रह (10) स्पर्शनेन्द्रिय-निग्रह (11) क्रोधविवेक (12) मानविवेक (13) मायाविवेक (14) लोभविवेक (15) भावसत्य (16) करण सत्य (17) योगसत्य (18) क्षमा (19) विरागता (20) मनः समाहरणता (21) वचनसमाहरणता (22) कायसमाहरणता (23) ज्ञान सम्पन्नता (24) दर्शन सम्पन्नता (25) चारित्र सम्पन्नता (26) वेदनातिसहनता (27) मारणान्तिकातिसहनता।2।। इनमें प्राणातिपात-विरमण आदि पाँच महाव्रत मूलगुण हैं, शेष 22 उत्तरगुण हैं। जिनमें पाँच इन्द्रियों का निग्रह करना अर्थात् उनकी उच्छृखल प्रवृत्ति को रोकना और क्रोधादि चारों कषायों का विवेक अर्थात् परित्याग करना आवश्यक है। अन्तरात्मा की शुद्धि को 'भावसत्य' कहते हैं। वस्त्रादि का यथाविधि प्रतिलेखन करते समय पूर्ण सावधानी रखना 'करणसत्य' है। मन, वचन, काया की प्रवृत्ति समीचीन रखना अर्थात तीनों योगों की शद्धि या पवित्रता रखना 'योगसत्य' है। मन में भी क्रोध भाव न लाना, द्वेष और अभिमान का भाव जागृत न होने देना 'क्षमा' गुण है। किसी भी वस्तु में आसक्ति नहीं रखना 'विरागता' गुण है। मन, वचन, और काय की अशुभ प्रवृत्ति का निरोध करना उनकी 'समाहारणता' कहलाती है। सम्यग्दर्शन ज्ञान और चारित्र से संपन्न तो होना ही चाहिये। शीत, उष्ण आदि परिषहों को सहना 'वेदनातिसहनता' है। मरण के समय सर्व प्रकार के परीषहों और उपसर्गों को सहना तथा किसी व्यक्ति द्वारा होने वाले मारणान्तिक कष्ट को सहते हुए भी उस पर कल्याणकारी मित्र की बुद्धि रखना 'मारणान्तिकातिसहनता' है। ___ यहाँ यह विशेष ज्ञातव्य है कि दिगम्बर परम्परा में श्रमणियों के 27 गुणों में पाँच महाव्रत और पाँच इन्द्रियों का निरोध रूप दस गुण तो उपर्युक्त हैं ही, शेष 17 गुण इस प्रकार हैं - पांच समितियों का परिपालन, तीन गुप्तियों का पालन, सामायिक, वन्दनादि छह आवश्यक क्रियाएँ करना, एक बार भोजन करना, केश-लुंचन करना और स्नान-दन्त-धावनादि का त्याग करना। श्रमणों में एक अचेल या नग्न रहने का गुण विशेष है। शेष गुण श्रमण-श्रमणी दोनों के एक समान हैं। अचेल गुण को छोड़कर श्वेताम्बर एवं दिगम्बर में वर्णित गुणों का परस्पर एक-दूसरे में अन्तर्भाव हो जाता है। 1.19 जैन श्रमणियों की आचार-संहिता श्रमणियों की दैनन्दिन जीवन-सरणि जैनधर्म में प्रतिपादित आचार की सुदृढ़ भूमि पर प्रतिष्ठित है। आचारनिष्ठ साध्वियों के व्यक्तित्व का प्रभाव सामान्य जनता के हृदय पर अंकित होता है उनका जीवन सैंकड़ों लोगों के लिये संदेश एवं प्रेरक रूप बनता है। अतः श्रमणियों की मूलभूत आचार-संहिता को हम श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परम्परा के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत कर रहे हैं। 221. समवायांग सूत्र 27वां समवाय 46 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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