________________ 'अभिसम्मत' ज्योतिशिखा साध्वी श्री विजयश्री जी "आर्या' द्वारा आलिखित "जैन श्रमणियों का बृहद् इतिहास" वस्तुतः एक ग्रन्थ है। यह ग्रन्थ रचना धर्मिता का एक उपमान है, प्रतिमान भी है। शोधार्थिनी साध्वी श्रीजी ने विषय-वस्तु को अष्टविध अध्याय में वर्गीकृत भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण से किया है। जिससे ग्रन्थ का व्यक्तित्व आभापूर्ण रूप से रूपायित है। इतना ही नहीं इससे यह पूर्णतः प्रगट है कि श्रद्धास्पदा साध्वी श्री जी माता शारदा की दत्तका नहीं, अपितु अंगजाता आज्ञानुवर्तिनी सुयोग्य नन्दिनी है। उपाध्याय रमेश मुनि आपका कार्य इतना पूर्ण होता है कि मुझे संशोधन की कोई अपेक्षा ही नहीं लगती। आपने जो श्रम किया है वह बहुत ही स्तुत्य है। पी. एच.डी. के सम्बन्ध में ऐसा परिश्रम विरल ही होता है। जैनसंघ आपके इस उपकार को कभी नहीं भुलेगा। डॉ. सागरमल जैन, शाजापुर (शोध निदेशक) जिन स्थापित चतुर्विध संघ श्रमण-श्रमणी, श्रावक और श्राविका में से श्रमणी वर्ग का साङ्गोपाङ्ग परिचय प्रस्तुत शोध प्रबन्ध में विवेचित है। प्रागैतिहासिक काल महावीर और महावीर के उत्तरवर्ती काल से लेकर वर्तमान काल तक की समस्त जैन परम्परा का लगभग दस हजार श्रमणियों का परिचय और श्रमण परम्परा को उनके योगदान का वास्तविक विवेचन प्रस्तुत करना अपने आप में एक दुःसाहस कार्य है। श्रमणाचार्य को देखते हुए इस कार्य का दुःसाध्यता गुरुत्तर हो जाती है। साध्वी श्री विजय श्री जी ने श्रम एवं धैयपूर्वक शोध प्रबन्ध ही नहीं अपितु श्रमणी विश्व कोश प्रस्तुत किया है जिससे विद्वत वर्ग के साथ ही सामान्य वर्ग भी दीर्घ काल तक लाभान्वित होता रहेगा। इस शोध प्रबन्ध के ! माध्यम से साहित्य एवं समाज की महनीय सेवा के लिए साध्वी श्री जी को शतश:वंदन। डॉ. अशोक सिंह ! मूल्य 8 2000/- (प्रति सेट) भारतीय विद्या प्रतिष्ठान M-2/77, सैक्टर 13, आत्मवल्लभ सोसायटी, रोहिणी, दिल्ली-110085 Jain Education International