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________________ श्रुतप्रज्ञा महासाध्वी डॉ. विजय श्री "आर्या" श्रुत की सतत समुपासना में संलग्न साधनामय जीवन, शिक्षा के उच्चतम आयामों का संस्पर्श करता हुआ कदम दर कदम स्वर्णपदकों से सम्मानित व्यक्तित्व, स्थानकवासी पंजाब परंपरा में श्रमणी अभिनन्दन ग्रंथ की प्रथम प्रणयनकत्री, श्रमणी परंपरा की गौरवान्वित मुकुट मणि, जैनागम दर्शन के रहस्योद्घाटन में सुदक्ष, सरल, विनम्र, विद्वद् जीवन की त्रिवेणी संगम है- महासाध्वी डॉ. विजय श्री जी। आपने जैन इतिहास में प्रथम बार दस हजार श्रमणियों की यशोमय जीवन गाथा को प्रस्तुत कृति में पिरोया है। अनेक श्रमणियों का श्रममय व्यक्तित्व जो यत्र-तत्र कला एवं स्थापत्य की परिधि में जुगनूं की तरह चमक रहा था, उसे अपने प्रज्ञा कौशल्य से प्रथम बार आदित्यमान किया है। अपनी प्रासाद कांत गुणमय साहित्यिक भाषा सौष्ठव के कल-कल नाद से प्रवाहित यह श्रमणी इतिहास वस्तुत: उच्च कोटि की साहित्यिक निधि है। भूत भावी वर्तमान श्रमणियों का एकत्र सम्मलिन प्रस्तुत इतिहास की अप्रतिम विशिष्टता है। आपका लेखनी रूप ऐतिहासिक ज्ञान गर्भित श्रमकण विद्वद् समाज में समादरणीय है, अनुसंधान हेतु प्रकाश स्तंभ है, कि बहुना, यह श्रमणी इतिहास समग्र श्रमणियों का अभिनन्दन करता हुआ विश्व इतिहास की एक अमूल्य धरोहर के रूप में समादरणीय होगा। यत्र-तत्र-सर्वत्र स्तुत्य आपकी इस अनमोल कृति हेतु हम अहोभाव के उपहार के सिवा क्याभेंट करें? साध्वी प्रतिभा श्री "प्राची" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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