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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास भाग गई थी और वहीं उसने दीक्षा ली थी। पद्मावती209 तथा यशभद्रा ने भी गर्भवती अवस्था में दीक्षा अंगीकार की थी, बाद में उनके पुत्र प्रसव हुए। ये प्रसंग अपवाद रूप में अज्ञात अवस्था में घटित हुए थे, सामान्यतया गर्भिणी स्त्री को श्रमणी-संघ में प्रवेश निषिद्ध है। कदाचित् किसी कारणवश वह दीक्षा अंगीकार कर लेती है, तो उसके जीवन एवं शील को दृष्टि में रखकर पूर्ण संरक्षण दिया जाता है। दिगम्बर ग्रन्थ महापुराण में दीक्षा के योग्य उस व्यक्ति को माना है, जिसका कुल विशुद्ध हो, चरित्र उत्तम हो, मुखाकृति सौम्य हो एवं प्रज्ञावन्त हो।।। दीक्षा के लिये विचारों की परिपक्वता सर्वप्रथम आवश्यक है। अपरिक्व आयु, अपरिपक्व विचार एवं अपरिपक्व वैराग्य दीक्षा के पवित्र उद्देश्य की सम्प्राप्ति में बाधक सिद्ध होते हैं। ___ इस प्रकार हम देखते हैं, कि जैनधर्म में श्रमणी-दीक्षा के प्रति आचार्यों की उदारतापूर्ण साथ ही गरिमामय दृष्टि रही है। 1.16.3 आज्ञा-प्राप्ति का विधान जैन-परम्परा में श्रमणी बनने के लिये स्त्री को अपने अभिभावक अथवा संरक्षक की अनुमति लेना अनिवार्य है। बिना अनुमति के कोई भी नारी प्रव्रज्या ग्रहण नहीं कर सकती है। संरक्षक माता-पिता, भाई, पति अथवा पुत्र कोई भी हो सकता है। संरक्षक की अनुमति के बिना दीक्षा लेने से परिवार एवं संघ में वैमनस्य एवं अविश्वास की भावनाएँ पैदा हो सकती हैं, अतः अनुमति लेने से इस प्रकार के विवादों से बचा जा सकता है। ज्ञाताधर्मकथा-12 में काली, रजनी आदि अनेक वृद्ध कुमारिकाओं के उल्लेख हैं, उन्होंने अपने माता-पिता से दीक्षा की आज्ञा प्राप्त की थी। महासती सुंदरी तब तक दीक्षा अंगीकार नहीं कर सकी, जब तक कि ज्येष्ठ भ्राता सम्राट भरत ने अनुज्ञा नहीं दे दी13, श्रीकृष्ण की पद्मावती आदि रानियाँ तथा राजा श्रेणिक की नंदा आदि तेरह रानियाँ। अपने स्वामी की आज्ञा लेकर दीक्षित हुई थीं। पति के दीक्षा ले लेने पर मूलश्री और मूलदत्ता का अपने श्वसुर श्रीकृष्ण से आज्ञा लेने का उल्लेख है।26 मृगावती ने बहनोई चण्डप्रद्योत से दीक्षा ग्रहण करने के लिये आज्ञा ली थी।17 1.16.4 दीक्षा देने का अधिकार तीर्थंकरों की सान्निधि में श्रमणियाँ तीर्थंकरो द्वारा ही दीक्षित होती थीं, तीर्थंकरों के अभाव में प्रमुखा आर्या मुमुक्षु महिलाओं को दीक्षा प्रदान करती थीं। सुभद्रा को पार्श्वनाथ-परम्परा की साध्वी-प्रमुखा सुव्रता ने दीक्षा दी थी। किंतु साधु किसी स्त्री को अथवा साध्वी किसी पुरूष को दीक्षा दे, इसका स्पष्ट निषेध है।19 हाँ, यदि किसी ऐसे स्थान 209. आवश्यक चूर्णि, भाग 2, पृ. 204-7 210. आवश्यक नियुक्ति 1283 211. विशुद्धकुल गोत्रस्य सवृत्तस्य वपुष्मतः। दीक्षायोग्यत्वमाप्नातं, सुमुखस्य सुमेधसः।। -महापुराण 39/158 212. ज्ञातासूत्र 2/1/3 213. त्रिषष्टिशलाका पुरूष चरित्र 1/3/651 214. अन्तकृद्दशांग सूत्र 5/1-8 215. वही 7/1-13 216. वही 5/9-10 217. त्रि. श. पु. च.. 10/8 218. पुष्पचूलिका, अध्ययन 4 219. व्यवहारसूत्र 7/6-9 44 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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