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________________ पूर्व पीठिका ___ संतति न होने से सुभद्रा आदि ने202 अथवा संतान की मृत्यु का समाचार सुनकर श्रेणिक राजा की काली आदि दस रानियों ने गृहवास छोड़कर श्रमणी-दीक्षा अंगीकार कर ली थी।203 पद्मावती, रूक्मिणी, सत्यभामा आदि कृष्ण की पट्टरानियों ने भविष्य में होने वाली दुर्घटना (द्वारिका नाश) का ख्याल कर आत्म-कल्याण का श्रेयकारी पथ चुना था तो ब्राह्मी-सुन्दरी आदि आध्यात्मिक भावना से उत्प्रेरित होकर श्रमणी-धर्म में प्रविष्ट हुई थीं। ज्ञाताधर्मकथा में पोटिला तथा सुकुमालिका204 का उदाहरण है जिन्होंने पति के प्रेम में कमी आ जाने के कारण प्रव्रज्या ग्रहण की थी। स्थानांग सूत्र में इन सब कारणों को मुख्यतः दस भागों में विभाजित किया है।205 आज भी वैधव्य, परिजन-वियोग, अनुकरण प्रवृत्ति अथवा स्नेहवश माता अपने पुत्र या पुत्री के साथ, बहिन भाई के पीछे या भगिनी के पीछे अथवा मित्रता निभाने हेतु दीक्षित हुए देखे जाते हैं। वर्तमान में दहेज प्रथा से अभिशप्त कन्याएँ कौमार्यावस्था में दीक्षा अंगीकार कर लेती हैं। असुन्दरता भी कन्याओं की श्रमणी दीक्षा का एक हेतु है। धर्म का प्रचार-प्रसार एवं ज्ञान-प्राप्ति भी श्रमणी-दीक्षा का एक प्रमुख कारण है। श्रमणी-संघ में प्रवेश करने के ये जितने भी कारण हैं वे सब उपचार से कहे हैं इनमें से या अन्य किसी भी हेतु से आंतरिक चेतना का रूपान्तरण हो जाना यह मुख्य बिंदु है। वस्तुतः श्रमणी-संघ में प्रवेश करने का चरम एवं परम हेतु संयम, तप आदि बाह्य एवं आन्तरिक साधना द्वारा कर्मक्षय कर मुक्ति प्राप्त करना है, जो श्रमणी बनने वाली सभी स्त्रियों के लिये समान है। 1.16.2 आवश्यक योग्यता यद्यपि जैन-परम्परा में श्रमणी बनने की अभिलाषा रखने वाली कोई भी स्त्री श्रमणी पद को प्राप्त कर सकती है, इसके लिये जाति, वर्ण आदि किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं है तथापि संघ की मर्यादा एवं सुव्यवस्था हेतु कुछ ऐसे भी नियम बनाये गये है, जिनके आधार पर किसी को दीक्षित किया जाता है। सामान्य रूप से 8 वर्ष से कम वय की कन्या दीक्षा ग्रहण नहीं कर सकती है।206 क्योंकि वह संयम-मर्यादा को समझने एवं पालन करने में समर्थ नहीं है। इसी प्रकार वृद्ध, रोगी, अंगहीन, अंधी, नपुंसक स्त्रियों के लिये भी दीक्षा देने का निषेध है, क्योंकि ऐसी श्रमणियों के कारण संघ में अनेक कठिनाइयाँ पैदा होने की संभावना रहती है। जिन स्त्रियों के कारण संघ में विवाद की स्थिति पैदा हो सकती है, ऐसी ऋणग्रस्ता, दासी, बंधक, अपहता अथवा राजा द्वारा दंडनीय स्त्रियाँ भी दीक्षा के अयोग्य मानी जाती हैं। मूर्ख, पागल, दुष्ट स्त्रियों को दीक्षा देने से संघ बदनाम होता है, अत: इन्हें भी दीक्षित करने का निषेध किया गया है। गर्भिणी तथा बालवत्सा नारियों को भी दीक्षा नहीं दी जाती है।207, यद्यपि उत्तराध्ययन नियुक्ति208 आदि में कुछ गर्भवती महिलाओं की दीक्षा के उल्लेख मिलते हैं। मदनरेखा दीक्षा ग्रहण करने के समय गर्भवती थी, मणिरथ द्वारा पति युगबाहु की हत्या कर दिये जाने के बाद वह जंगल में 202. पुष्पचूलिका, अध्याय 4 203. अन्तकृद्दशांग, वर्ग 8 204. ज्ञातासूत्र 1/14, 1/16 205. स्थानांग 10/9 206. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा खुड्डगं व खुड्डियं वा उण?वास जायं उवट्ठावेत्तए वा संलुंचितए वा - व्यवहार सूत्र 10/24 207. स्थानांग 3/202, टीका पृ. 154-55 208. उत्तराध्ययन नियुक्ति पृ. 136-140 43 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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