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________________ २८ ] : पञ्चाध्यायी । प्रथम द्रव्यका लक्षण गुणपर्ययवद्रव्यं लक्षणमेतत्सुसिद्धमविरुद्धम् । गुणपर्ययसमुदायो द्रव्यं पुनरस्य भवति वाक्यार्थः ॥७२॥ ... अर्थ-जिसमें गुण पर्याय पाये जाय, वह द्रव्य है । यह द्रव्यका लक्षण अच्छी तरह सिद्ध है । इस लक्षणमें किसी प्रकारका विरोध नहीं आता है। "गुण पर्याय जिसमें पाये जायं वह द्रव्य है" इस वाक्यका स्पष्ट अर्थ यह है कि गुण और पर्याोका समुदाय ही द्रव्य है। भावार्थ-" गुणपर्ययवद्रव्यम् " इस वाक्यमें वतुप प्रत्यय है। उसका ऐसा अर्थ निकलता है कि गुण, पर्यायवाला द्रव्य है । इस कथनसे कोई यह न समझ लेवें कि गुण पर्याय कोई दूसरे पदार्थ हैं जो कि द्रव्यमें रहते हैं और उन दोनोंका आधार भूत द्रव्य कोई दूसरा पदार्थ है । इस अनर्थ अर्थके समझनेकी आशंकासे आचार्य नीचेके चरणसे स्वयं उस वाक्यका स्पष्ट अर्थ करते हैं कि गुण, पर्यायवाला द्रव्य है अथवा गुणपर्याय जिसमें पाये जायं वह द्रव्य है। इन दोनोंका. यही अर्थ है कि गुण पर्यायोंका समूह ही द्रव्य है । यह बात पहले ही कही जा चुकी है कि अनन्त गुणोंका अखण्ड पिण्ड ही द्रव्य है, और वे गुण प्रतिक्षण अपनी अवस्थाको बदलते रहते हैं इसलिये त्रिकालवर्ती पर्यायोंको लिये हुए जो गुणोंका अखण्ड पिण्ड है वही द्रव्य है । गुण, पर्यायसे पृथक कोई द्रव्य पदार्थ नहीं है। इसी बातको स्फुट करते हुए किन्ही आचार्योका कथन प्रकट करते है। द्रव्यका लक्षणगुण समुदायो द्रव्यं लक्षणमेतावताप्युशन्ति बुधाः। समगुणपर्यायो वा द्रव्यं कैश्चिन्निरूप्यते वृद्धैः ॥ ७३ ॥ अर्थ-कोई २ बुद्धिधारी " गुण समुदाय ही द्रव्य है " ऐसा भी द्रव्यका लक्षण कहते हैं। कोई विशेष अनुभवी वृद्ध पुरुष समान रीति ( साथ २ ) से होनेवाली गुणोंकी पर्यायोंको ही द्रव्यका लक्षण बतलाते हैं। भावार्थ-पहले श्लोकमें गुण और पर्याय दोनोंको ही द्रव्यका लक्षण बतलाया गया था, परन्तु यहांपर पर्यायोंको गुणोंसे पृथक् पदार्थ न समझकर गुण समुदायको ही द्रव्य कहा गया है। वास्तवमें गुणोंकी अवस्थाविशेष ही पर्यायें हैं। गुणोंसे सर्वथा भिन्न पर्याय कोई पदार्थ नहीं है । इसलिये गुण, पर्यायमें अभेद बुद्धि रखकर गुण समुदाय ही द्रव्य कहा गया हैं । जब गुणोंसे पर्याय भिन्न वस्तु नहीं है किन्तु उन गुणोंकी ही अवस्था विशेष है तब यह बात भी सिद्ध हुई समझना चाहिये कि उन अवस्थाओंका समूह ही गुण है। त्रिकालवर्ती अवस्थाओं के समूहको छोड़कर गुण और कोई पदार्थ नहीं है। यह बात पहले भी स्पष्ट रीतिसे कही जा चुकी है कि गुणोंके अंशों का नाम ही पर्याय है और उन अंशोंका समूह ही गुण है । जबकि पर्याय समूह ही गुण है तब गुणसमुदायको द्रव्य कहना अथवा पर्यायसमुदायको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001681
Book TitlePanchadhyayi Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherGranthprakashan Karyalay Indore
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size18 MB
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