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________________ vvvvvv अध्याय । सुबोधिनी टीका। अर्थ-महावीर स्वामीके सिवाय और भी जितने (वृषभादिक २३) तीर्थकर हैं। तथा अनादि कालसे होनेवाले अनन्त सिद्ध हैं। उन सबको एक साथ मैं नमस्कार करता हूं। धर्माचार्य, उपाध्याय, और साधु, इन तीन श्रेणियोंमें विभक्त मुनीश्वरोंको भी मैं वन्दना करता हूं। जिनशासनका माहात्म्यजीयाज्जैनं शासनमनादिनिधनं सुवन्धमनवद्यम् । यदपि च कुमतारातीनदयं धूमध्वजोपमं दहति ॥ ३॥ ___अर्थ-जो जैन शासन (जैनमत) अनादि-अनन्त है । अतएव अच्छी तरह वन्दने योग्य है । दोषोंसे सर्वथा मुक्त है । साथमें खोटे मत रूपी शत्रुओंको अग्निकी तरह जलानेवाला है, वह सदा जयशील बना रहे। ग्रन्थकारकी प्रतिज्ञाइति वन्दितपञ्चगुरुः कृतमङ्गलसक्रियः स एष पुनः । नाम्ना पञ्चाध्यायी प्रतिजानीते चिकीर्षितं शास्त्रम् ॥ ४॥ अर्थ-इस प्रकार पञ्च परमेष्ठियोंकी बन्दना करनेवाला और मङ्गलरूप श्रेष्ठ क्रियाको करने वाला यह ग्रन्थकार पञ्चाध्यायी नामक ग्रन्थको बनानेकी प्रतिज्ञा करता है। ग्रन्यके बनाने में हेतुअत्रान्तरंगहेतुर्यद्यपि भावः कविशुद्धतरः। हेतोस्तथापि हेतुः साध्वी सर्वोपकारिणी बुद्धिः ॥५॥ अर्थ-ग्रन्थ बनाने में यद्यपि अन्तरंग कारण कविका अति विशुद्ध भाव है, तथापि उप्त कारणका भी कारण सब जीवोंका उपकार करनेवाली श्रेष्ठ बुद्धि है। भावार्थ-जबतक ज्ञानावरण कर्मका विशेष क्षयोपशम न हो, तबतक अनेक कारण कलाप मिलनेपर भी ग्रन्थ निर्माणादि कार्य नहीं हो सक्ते । इस लिये इस महान् कार्यमें अन्तरंग कारण तो कविवर (ग्रन्थकार) का विशेष क्षायोपशमिक भाव है परन्तु उस क्षयोपशम होनेमें भी कारण सब जीवोंके उपकार करनेके परिणाम हैं। विना उपकारी परिणामोंके हुए इस प्रकारकी परिणामोंमें निर्मलता ही नहीं आती। १ आचार्यका मुनियोंके साथ धार्मिक सम्बन्ध ही होता है । परन्तु मृहस्थाचार्यका गृहस्थोंके साथ धार्मिक और सामाजिक, दोनों प्रकारका सम्बन्ध रहता है। इसीलिये आचार्यका धर्म विशेषण दिया है। * आनुमानिक-श्रीमत्परमपूज्य अमृतचन्द्र सूरि । ऐसा अनुमान क्यों किया जाता है ? यह भूमिकासे स्पष्ट होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001681
Book TitlePanchadhyayi Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherGranthprakashan Karyalay Indore
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size18 MB
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