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________________ अध्याय।] सुबोधिनी टीका। शंकाकारननु चैवं परसमयः कथं स निश्चयनयावलंवी स्यात् । अविशेषादपि स यथा व्यवहारनयावलंबी यः ॥ ६४५॥ अर्था--जो व्यवहारनयका अवलम्बन करनेवाला है, वह जिस प्रकार सामान्यरीतिसे मिथ्यादृष्टि है उसी प्रकार जो निश्चयनयका अवलम्बन करनेवाला है वह मिथ्यादृष्टि क्यों है ? अर्थात व्यवहारनयके अवलम्बन करनेवालेको मिथ्यादृष्टि कहा गया है, सो ठीक परंतु निश्चयनयावलंबीको भी मिथ्यादृष्टि ही कहा गया है सो क्यों ? उत्तर-- सत्यं किन्तु विशेषो भवति स सूक्ष्मो गुरूपदेश्यत्वात् । अपि निश्चयनयपक्षादपरः स्वात्मानुभूतिमहिमा स्यात् ॥१४६॥ अर्थ--ठीक है, परन्तु निश्चयनयसे भी विशेष कोई है, वह सूक्ष्म है, इसलिये वह मुरुके ही उपदेश योग्य है । सिवा महनीय गुरुके उसका स्वरूप कोई नहीं बतला सक्ता । वह विशेष स्वात्मानुभूतिकी महिमा है जोकि निश्चयनयसे भी बहुत सूक्ष्म और भिन्न है । उभयं णयं विभणिमं जाणइ गवरं तु समय पडिवद्धो। णदु णयपक्खं गिण्हदि किंचिवि णयपक्खपरिहीणो ॥१॥ इत्युक्तसूत्रादपि सविकल्पत्वात्तथानुभूतेश्च । सर्वोपि नयो यावान् परसमयः सच नयावलंबी ॥ ६४७ ॥ अर्थ-निश्चय नयावलम्बीको भी मिथ्यादृष्टि कहा गया है इस विषयमें उक्त गाथा भी प्रमाण है। उसका अर्थ यह है कि जो दो प्रकारके नय कहे गये हैं उन्हें सम्यग्दृष्टि जानता तो है परन्तु किसी भी नयके पक्षको ग्रहण नहीं करता है, वह नय पक्षसे रहित है। है । इस गाथारूप सूत्रसे यह बात सिद्ध हो चुकी कि सम्यग्दृष्टि निश्चय नयका भी अवलम्बन नहीं करता है। दूसरी बात यह है कि निश्चय नयको भी आचार्यने सविकल्पक बतलाया है और जितना सविकल्प ज्ञान है उसे अभूतार्थ बतलाया है जैसा कि पहले कहा गया है यथा-" यदि वा ज्ञानविकल्पो नयो विकल्पोस्ति सोप्यपरमार्थः” इसलिये सविकरुपज्ञानात्मक होनेसे भी निश्चय नय मिथ्या सिद्ध होता है, तथा अनुभवमें भी यही बात आती है कि जितने भी नय हैं सभी पर समय-मिथ्या हैं, तथा उन नयोंका अवलम्बन करनेवाला भी मिथ्यादृष्टि है ? स्वात्मानुभूतिका स्वरूपस यथा सति सविकल्पे भवति स निश्चयनयो निषेधात्मा। न विकल्पो न निषेधो भवति चिदात्मानुभूतिमात्रं च ॥३४८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001681
Book TitlePanchadhyayi Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherGranthprakashan Karyalay Indore
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size18 MB
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