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________________ अध्याय। सुबोधिनी टीका । एकाकारननु च व्यवहारनयः सोदाहरणो यथा तथायमपि । भवतु तदा को दोषो ज्ञानविकल्पाविशेषतो न्यायात् ॥६११॥ स यथा व्यवहारनयः सदनेकं स्याच्चिदात्मको जीवः । तदितरनयः स्वपक्षं वदतु सदेकं चिदात्मवत्वितिचेत् ॥१२॥ अर्थ-जिस प्रकार व्यवहारनय उदाहरण सहित होता है, उस प्रकार निश्चयनय भी उदाहरण सहित माना जाय तो क्या दोष आता है ? क्योंकि जैसा ज्ञान विकल्प उदाहरण रहित ज्ञानमें है, वैसा ही ज्ञान विकल्प उदाहरण सहित ज्ञान विकल्पमें है । इस न्यायसे निश्चय नयको सोदाहरण ही मानना ठीक है। उदाहरण सहित निश्चय नयको कहनेसे व्यवहार नयसे कैसे भेद होगा, ? वह इस प्रकार होगा-जैसे व्यवहार नय सत्को अनेक बतलाता है, जीवको चिदात्मक बतलाता है । निश्रय नय केवल अपने पक्षका ही विवेचन करै, जैसे सत् एक है, जीव चित् ही है। ऐसा कहनेसे निश्चय नय उदाहरण सहित भी होजाता है, तथा व्यवहार नयसे भिन्न भी होजाता है ? उत्तरन यतः सङ्करदोषो भवति तथा सर्वशून्यदोषश्च । ___ स यथा लक्षणभेदालक्ष्यविभागोस्त्यनन्यथासिद्धः ॥ ६१३ ॥ अर्थ-शंकाकारकी उपर्युक्त शंका ठीक नहीं है । ऐसी शंकामें संकर दोष और सर्वशून्य दोष आता है । क्योंकि लक्षणके भेदसे लक्ष्यका भेद अवश्यंभावी है। भावार्थसत्को एक कहने पर भी सत् लक्ष्य और उसका 'एक' लक्षण सिद्ध होता है। इसी प्रकार जीवको चित्स्वरूप कहने पर भी जीव लक्ष्य और उसका चित् लक्षण सिद्ध होता है। ऐसा लक्ष्य लक्षणरूप भेद व्यवहारनयका ही विषय होसक्ता है, निश्चयका नहीं, यदि निश्चयका भी भेद, विषय माना जाय तो संकरता और सर्वशून्यता भी स्वयं सिद्ध है। लक्षणमेकस्य सतो यथाकथञ्चिद्यथा द्विधाकरणम् । - व्यवहारस्य तथा स्यात्तदितरथा निश्चयस्य पुनः॥ ६१४ ।। अर्थ-व्यवहार नयका लक्षण यह है कि एक ही सत्का जिस किसी प्रकार द्वैधीभाव करना, अर्थात् सत्में भेद बतलाना व्यवहार नयका लक्षण है, ठीक इससे उल्टा निश्चय नयका लक्षण है, अर्थात् सत्में अभेद बतलाना निश्चय नयका लक्षण है। निश्चय नयको सोदाहरण माननेमें दोषअथ चेत्सदेकमिति वा चिदेव जीवोथ निश्चयो वदति। . व्यवहारान्तर्भावो भवति सदेकस्य तद्विधापत्तेः ॥ ६१५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001681
Book TitlePanchadhyayi Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherGranthprakashan Karyalay Indore
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size18 MB
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