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पञ्चाध्यायी।
[प्रथम
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__ अर्थ-जिस 'प्रकार जीव ज्ञान गुणवाला है, यह नय (व्यवहार) अर्थलोकके विना अर्थात् पदार्थको विषय करनेके विना नहीं होता है, उसी प्रकार' ऐसा नहीं है, यह नय (निश्चय) भी निषेधको विषय करनेसे अर्थालोकके विना नहीं होता है । विषय बोधसे दोनों ही सहित हैं।
स्पष्टी करणस यथा शक्तिविशेषं समीक्ष्य पक्षश्चिदात्मको जीवः। न तथेत्यपि पक्षा स्यादभिन्नदेशादिकं समीक्ष्य पुनः॥६०७॥
अर्थ-जीवकी विशेष शक्तिको देख कर (विचार कर) यह कहना या समझना कि जीव चिदात्मक है जिस प्रकार यह पक्ष है, उसी प्रकार जीवको अभिन्न प्रदेशी समझ कर यह कहना या समझना कि वैसा नहीं है, यह भी तो पक्ष है। पक्षमाहिता उभयत्र समान है, क्योंकि--
अर्थालोकविकल्पः स्यादुभयत्राविशेषतोपि यतः ।
न तथेत्यस्य नयत्वं स्यादिह पक्षस्य लक्षकत्वाच ॥६०८॥
अर्थ--अर्थका प्रकाश-पदार्थ विषयितारूप विकल्प दोनों ही जगह समान हैं । इसलिये वैसा नहीं है, इत्याकारक निषेधको विषय करनेसे द्रव्यार्थिक नयमें नयपना है ही। कारण उसने एक निषेध पक्षका अवलम्बन किया है।
एकाङ्गग्रहणादिति पक्षस्य स्यादिहांशधर्मत्वम् । न तथेति द्रव्यार्थिकनयोस्ति मूलं यथा नयत्वस्य ॥ ३०९ ॥
अर्थ---पक्ष उसीको कहते हैं जो एक अंगको ग्रहण करता है । इसलिये 'न तथा' इस पक्षमें भी अंश धर्मता है ही। अतएव 'न तथा' को विषय करनेवाला द्रव्यार्थिक नय एक अंशको विषय करनेसे पक्षात्मक है ।
एकाङ्गत्वमसिद्धं न नेति निश्चयनयस्य तस्य पुनः ।
वस्तुनि शक्तिविशेषो यथा तथा तदविशेषशक्तित्वात् ॥६१०॥
अर्थ---न, इस निषेधको विषय करनेवाले निश्चयनयमें एकाङ्गता असिद्ध नहीं है, किन्तु सिद्ध ही है । जिस प्रकार वस्तुमें विशेष शक्ति होती है, उसी प्रकार उसमें सामान्य शक्ति भी होती है।
. भावार्य-पदार्थ सामान्य विशेषात्मक है, वही प्रमाणका विषय है, तथा सामान्यांश द्रव्यार्थिकनयका विषय है, विशेषांश पर्यायार्थिकनयका विषय है । इसलिये विशेषके निषेधरूप सामान्यांशको विषय करनेवाले निश्चयनय-द्रव्यार्थिकनयमें एकाङ्गता सिद्ध ही है।
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