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________________ अध्याय । सुबोधनी टीका। है। उसी प्रकार प्रतिषेधक भी निषेधात्मक विकल्परूप है। भावार्थ-जैसे प्रतिषेध्यमें विधिरूप पक्ष होनेसे वह विकल्पात्मक है वैसे प्रतिषेधकमें निषेधरूप पक्ष होनेसे वह भी विकल्पात्मक है। दृष्टान्त तल्लक्षणमपि च यथा स्यादुपयोगो विकल्प एवेति । अर्थानुपयोगः किल वाचक इह निर्विकल्पस्य ॥ ६०३ ॥ अर्थाकृतिपरिणमनं ज्ञानस्थ स्यात् किलोपयोग इति । नार्थाकृतिपरिणमनं तस्य स्यादनुपयोग एवं यथा ॥६०४॥ नेति निषेधात्मा यो नानुपयोगः नबोधपक्षत्वात् । अर्थाज्ञारेण विना नेतिनिषेधावबोधशून्य शत् ॥ ६७५॥ अर्थ-प्रतिषेधक भी विकल्पात्मक है इस बातको ही इस श्लोकों द्वारा स्पष्ट किया जाता है। पदार्थका उपयोग ही तो विकल्प कहा जाता है, तथा पदार्थका अनुपयोग निर्विकल्प कहा जाता है, तथा ज्ञानका पदार्थाकार परिणमन होना ही उपयोग कहलाता है, उसका अर्थाकार परिणमन न होना अनुपयोग कहलाता है । जब उपयोग अनुपयोगकी ऐसी व्यवस्था है तब द्रव्यार्थिक नयमें 'न' इत्याकारक जो निषेधात्मक बोध है वह भी निषेध ज्ञानरूप पक्षसे विशिष्ट होनेसे अनुपयोग नहीं कहा जा सक्ता है। किन्तु उपयोग ही है, क्योंकि उपयोग उसीको कहते हैं कि जिस ज्ञानमें पदार्थाकार परिणमन हो । यहां पर भी अर्थाकार परिणमनके बिना 'न' इत्याकारक निषेधात्मक ज्ञान नहीं हो सक्ता है। परन्तु द्रव्यार्थिक नयमें निषेधरूप बोध होता है। इसलिये निषेधाकार परिणमन होनेसे द्रव्यार्थिक नय भी उपयोगात्मक है और उपयोगको ही विकल्प कहते हैं। भावार्थ-किसी पदार्थको ज्ञान विषय करे इसीका नाम उपयोग है। यही उपयोग विकल्पात्मक बोध कहा जाता है। जिस प्रकार व्यवहार नयके विषयभूत पदार्थोको विषय करनेसे वह नय उपयोगात्मक होनेसे विकल्पात्मक है, उसी प्रकार उस नयके विषयभूत पदार्थोका निषेध करने रूप पार्थको विषय करनेसे द्रव्यर्थिक नय भी उपयोगात्मक होनेसे विकल्पात्मक है । व्यवहार नयने विधि विषय पड़ा है, यहां पर निषेध विषय पड़ा है। विषय बोधसे व्यवहारके समान वह भी खाली नहीं है । इसलिये द्रव्यर्थिक नयमें नयका लक्षण सुघटित ही है । दृष्टान्त--- जीवो ज्ञानगुणः स्यादर्थालोकं विना नयो नासो। नेति निषेधात्मत्वादालोकं विना नयो नासी ॥३०६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001681
Book TitlePanchadhyayi Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherGranthprakashan Karyalay Indore
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size18 MB
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