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________________ १७० ] पञ्चाध्यायी। [ प्रथम लेकर अर्थात् पर्याय विशेषके द्वारा जो पदार्थका विवेचन किया जाता है उसे ही नय कहते हैं अथवा सम्पूर्ण पदार्थको प्रमाण विषय करता है और उसके एक देशको नय विषय करता है। इस प्रकार अंश अंशीरूप होनेसे प्रमाणके समान नय भी फलविशिष्ट ही होता है। सारांशतस्मादनुपादेयो व्यवहारोऽतद्गणे तदारोपः।। इष्टफलाभावादिह न नयो वर्णादिमान पथा जीवः ॥५६३॥ अर्थ-निस वस्तुमें जो गुण नहीं हैं, दूसरी वस्तुके गुण उसमें आरोपित-विवक्षित किये जाते हैं; जहांपर ऐसा व्यवहार किया जाता है वह व्यवहार ग्राह्य नहीं है। क्योंकि ऐसे व्यवहारसे इष्ट फलकी प्राप्ति नहीं होती है । इसलिये जीवको वर्णादिवाला कहना, यह नय नहीं है किन्तु नयाभास है । भावार्थ-शंकाकारने उपर कहा था कि जीवको वर्णादिमान् कहना इसको असद्भूत व्यवहार नय कहना चाहिये । ग्रन्थकार कहते हैं कि यह नय नहीं किन्तु नयाभास है। क्योंकि जीवके वर्णादि गुण नहीं हैं फिर भी उन्हें जीवके कहनेसे जीव और पुद्गलमें एकत्त्वबुद्धि होने लगेगी । यही इष्ट फलकी हानि है । शंकाकारननु चैवं सति नियमादुक्तासद्भूतलक्षणो न नयः । भवति नयाभासः किल क्रोधादीनामतद्गुणारोपात् ॥५६४ ॥ अर्थ-यदि एक वस्तुके गुण दूसरी वस्तुमें आरोपित करनेका नाम नयाभास है तो ऐसा माननेसे जो ऊपर असद्भत व्यवहार नय कहा गया है उसे भी नय नहीं कहना चाहिये किन्तु नयाभास कहना चाहिये । कारण क्रोधादिक जीवके गुण नहीं हैं फिर भी उन्हें जीवके कहा गया है । यह भी तो अतद्गुणारोप ही है, इसलिये ग्रन्थकारका कहा हुआ भी असद्भुत व्यवहार नय नयाभास ही है ? उत्तरनैवं यतो यथा ते क्रोधाद्या जीवसंभवा भावाः। न तथा पुद्गलवपुषः सन्ति च वर्णादयो हि जीवस्य ॥ ५६५ ॥ अर्थ-शंकाकारका उपर्युक्त कहना ठीक नहीं है । क्योंकि जिस प्रकार क्रोधादिक भाव जीवसे उत्पन्न हैं अथवा जीवके हैं। उस प्रकार पुद्गलमय वर्णादिक जीवके भाव नहीं हैं । भावार्थ-पुद्गल कर्मके निमित्तसे आत्माके चारित्र गुणका जो विकार है उसे ही क्रोध, • मान, माया, लोभादिके नामसे कहा जाता है । इसलिये क्रोधादिक आत्माके ही वैभाविक भाव हैं । अतः जीवमें उनको आरोप करना असद्गुणारोप नहीं कहा जासक्ता किन्तु तद् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001681
Book TitlePanchadhyayi Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherGranthprakashan Karyalay Indore
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size18 MB
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