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________________ सुबोधिनी टीका । दोनों ज्ञानोंका स्वरूप ५५९ ॥ तत्रापि यथावस्तु ज्ञानं सम्यग्विदोषहेतुः स्यात् । अथ चेदयथावस्तु ज्ञानं मिथ्याविशेषहेतुः स्यात् ॥ अर्थ — उन दोनों ज्ञानोंमें सम्यग्ज्ञानका कारण वस्तुका यथार्थ ज्ञान है तथा मिथ्याज्ञानका कारण वस्तुका अयथार्थ ज्ञान है । भावार्थ -- जो वस्तु ज्ञानमें विषय पड़ी है उस वस्तुका वैसा ही ज्ञान होना जैसी कि वह है, उसे सम्यग्ज्ञान कहते हैं । जैसे- किसीके ज्ञानमें चांदी विषय पड़ी हो तो चांदीको चांदी ही वह समझे तब तो उसका वह ज्ञान सम्यग्ज्ञान है और यदि चांदीको वह ज्ञान सीप समझे तो वह मिथ्याज्ञान है जिस ज्ञानमें वस्तु तो कुछ और ही पड़ी हो और ज्ञान दूसरी ही वस्तुका हो उसे मिथ्याज्ञान कहते हैं । इसप्रकार विषयके भेद से ज्ञानके भी सम्यक् और मिथ्या ऐसे दो भेद हो जाते हैं । नय भी दो भेद हैं ज्ञानं यथा तथासौ नयोस्ति सर्वो विकल्पमात्रत्वात् । तत्रापि नयः सम्यक् तदितरथा स्यान्नयाभासः ॥ ५६० ॥ अर्थ - जिस प्रकार ज्ञान है उसी प्रकार नय भी है, अर्थात् जैसे सामान्य ज्ञान एक है वैसे सम्पूर्ण नय भी विकल्पमात्र होनेसे (विकल्पात्मक ज्ञानको ही नय कहते हैं) सामान्यरूपसे एक है और विशेषकी अपेक्षासे ज्ञानके समान नय भी सम्यक् नय, मिथ्या नय ऐसे दो भेद वाले हैं । जो सम्यक् नय हैं उन्हें नय कहते हैं जो मिथ्या नय हैं उन्हें नयामास कहते हैं । अध्याय । ] दोनोंका स्वरूप- तद्गुणसंविज्ञानः सोदाहरणः सहेतुरथ फलवान् ७ यो हि नयः स नयः स्याद्विपरीतो नयो नयाभासः ।। ५६१ ।। अर्थ — जो तद्गुणसंविज्ञान हो अर्थात् गुण गुणीके भेद पूर्वक किसी वस्तुके विशेष गुणोंको उसीमें बतलानेवाला हो, उदाहरण सहित हो, हेतु पूर्वक हो, फल सहित हो, वही नय, नय कहलाता है । उपर्युक्त बातोंसे जो विपरीत हो, वह नय नयाभास कहलाता है । फलवत्वेन नयानां भाव्यमवश्यं प्रमाणवद्धि यतः । [ १६९ treasurer स्युस्तदत्रयता नयास्तदंशत्वात् ॥ ५६२ ॥ अर्थ --- जिस प्रकार प्रमाण फल सहित होता है उस प्रकार नयोंका भी फल सहित होना परम आवश्यक है कारण आवयवी प्रमाण कहलाता है, उसीके अवयव नय कहलाते हैं । नय प्रमाणके ही अंश रूप हैं । भावार्थ:-नयोंकी उत्पत्तिमें प्रमाण योनिभूत मूल कारण है । प्रमाणसे जो पदार्थ कहा जाता है उसके एक अंशको · Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001681
Book TitlePanchadhyayi Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherGranthprakashan Karyalay Indore
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size18 MB
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