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________________ १६० ] पचाध्यायी । [ प्रथम होता है । विना पर निमितके उसका स्वाभाविक परिणमन होता है। + उसी वैभाविक शक्तिके विमाव परिणमनसे असद्भूत व्यवहार नयके विषयभूत जीवके क्रोत्रादिक भाव बनते हैं । इसका फल फलमागन्तुकभावादुपाधिमात्रं विहाय यावदिह । शेषस्तच्छुद्धगुणः स्यादिति मत्त्वा सुदृष्टिरिह कश्चित् ॥५३२॥ अथ-- जीवमें क्रोधादिक उपाधि है । वह आगन्तुक भावों- कर्मोंसे हुई है । उपाधिको दूर करदेने से जीव शुद्ध गुणोंवाला प्रतीत होता है, अर्थात् जीवके गुणों में से परनिमित्तसे होनेवाली उपाधिको हटा देनेसे बाकी उसके चारित्र आदि शुद्ध गुण प्रतीत होने लगते हैं । ऐसा समझ कर जीवके स्वरूपको पहचान कर कोई ( मिथ्यादृष्टि अथवा विचलितवृत्ति जीव भी) सम्यग्दृष्टि हो सकता है । वस यही इस नयका फल है । दृष्टान्त अत्रापि च संदृष्टिः परगुणयोगाच्च पाण्डुरः कनकः । हित्वा परगुणयोगं स एव शुद्धोऽनुभूयते कैश्चित् ॥ ५३३ ॥ अर्थ - इस विषय में दृष्टान्त भी स्पष्ट ही है कि सोना दूसरे पदार्थके गुणके सम्बन्धसे कुछ सफेदीको लिये हुए पीला हो जाता है, परगुणके बिना वही सोना किन्हींको शुद्ध (तेजोमय पीला) अनुभवमें आता है । सद्भूत, असद्भूत नयोंके भेद...... सद्भूतव्यवहारोऽनुपचरितोस्ति च तथोपचरितश्च । अपि चाsसद्भूतः सोनुपचरितोस्ति च तथोपचरितश्च ॥ ५३४॥ अर्थ – सद्भूत व्यवहार नय अनुपचरित भी होता है और उपचरित होता है । तथा असद्भूत व्यवहार नय भी अनुपचरित और उपचरित होता है । अनुपचारत सद्भूत व्यवहार नयका स्वरूप --- स्यादादिमो यथान्तलना या शक्तिरस्ति यस्य सतः । तत्तत्सामान्यतया निरूप्यते चेद्विशेषनिरपेक्षम् ॥ ५३५ ॥ अर्थ - जिस पदार्थके भीतर जो शक्ति है, वह विशेषकी अपेक्षासे रहित सामान्य रीतिसे उसीकी निरूपण की जाती है । यही अनुपचरित सद्भतव्यवहार नयका स्वरूप है । दृष्टान्स इदमत्रोदाहरणं ज्ञानं जीवोपजीवि जीवगुणः । ज्ञेयालम्बनकाले न तथा ज्ञेयोपजीवी स्यात् ॥५३६॥ + पञ्चाध्यायीके द्वितीयभागमें बन्ध प्रकरणमें इस शक्तिका विशद विवेचन किया गया I Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001681
Book TitlePanchadhyayi Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherGranthprakashan Karyalay Indore
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size18 MB
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