SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 180
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुबोधिनी टीका। - emain AAwwwvvvvum-vvvvvvvvvvvvvvv~ ____ अर्थ-अनुपचरित-सद्भतव्यवहारनयके विषयमें यह उदाहरण है कि ज्ञान जीवका अनुजीवी गुण है । वह ज्ञेयके अवलम्बन कालमें ज्ञेयका उपजीवी गुण नहीं होता है । भावार्थ-किसी पदार्थको विषय करते समय ज्ञान सदा जीवका अनुजीवी गुण रहेगा। यही अनुपचरित--सदभूत व्यवहार नयका विषय है। उसोका खुलासा-- घटसद्भावे हि यथा घटनिरपेक्षं चिदेव जीवगुणः । अस्ति घटाभावेषि च घटनिरपेक्ष चिदेव जीवगुणः ॥ ५३७ ॥ अर्थ-जैसे ज्ञान घटके सद्भाव ( घटको विषय करते समय ) में घटनिरपेक्ष जीवका गुण है। वैसे घटाभावमें भी वह घट निरपेक्ष जीवका ही गुण है । भावार्थ-जिस समय ज्ञानमें घट विषय पड़ा है उस समय भी वह घटाकर ज्ञान ज्ञान ही है। घटाकार ( घटको विषय करनेसे ) होनेसे वह ज्ञान घटरूप अथवा घटका गुण नहीं हो जाता है । घटाकार होना केवल ज्ञानका ही स्वरूप है । जैसे दर्पणमें किसी पदार्थका प्रतिबिम्ब पड़नेसे वह दर्पण पदार्थाकार हो जाता है । दर्पणका पदार्थाकार होना दर्पणकी ही पर्याय है । दर्पण उस प्रतिविम्बमूलक पदार्थरूप नहीं हो जाता है, तथा जैसा दर्पण पदार्थाकार होनेपर भी वह अपने स्वरूपमें है वैसा पदार्थाकार न होनेपर भी वह अपने स्वरूपमें है । ऐसा नहीं है कि पदार्थाकार होते समय पदार्थके कुछ गुण दर्पणमें आ जाते हों अथवा दर्पणके कुछ गुण पदार्थमें चले जाते हों उसी प्रकार ज्ञान भी जैसा पदार्थाकार होते समय जीवका चैतन्य गुण है वैसा पदार्थाकारके बिना भी जीवका चैतन्य गुण है । दोनों अवस्थाओंमें बह जीवका ही गुण है ।। एतेन निरस्तं यन्मतमेतत्सति घटे घटज्ञानम् । असति घटेब ज्ञान न घटज्ञान प्रमाणशून्यत्वात् ॥ ५३८॥ अर्थ-जो सिद्धान्त ऐसा मानता है कि घटके होनेपर ही घटज्ञान हो सकता है, घटके न होने पर घटज्ञान भी नहीं हो सकता और ज्ञान भी नहीं हो सकता है । वह सिद्धान्त उपयुक्त कथनसे खण्डित हो चुका, क्योंकि ऐसा सिद्धान्त माननेमें कोई प्रमाण नहीं है । भावार्थ-बौद्ध सिद्धान्त है कि पदार्थज्ञानमें पदार्थ ही कारण है, विना पदार्थके उसका ज्ञान नहीं हो सकता है, साथ ही ज्ञानमात्र भी नहीं हो सकता है क्योंकि जो भी ज्ञान होगा वह पदार्थसे ही उत्पन्न होगा, अर्थात् पदार्थके रहते हुए ही होगा। पदार्थका ज्ञानमें कारण होना वह यों बतलाता है कि यदि पदार्थके ज्ञानमें पदार्थ कारण नहो तो निस समय घटज्ञान किया जाताहै उस समय उस ज्ञानमें घट ही विषय क्यों पड़ता है, पटादि अन्य पदार्थ क्यों नहीं पड़ जाते ? उसके यहां तो घटज्ञानमें घट कारण है इसलिये घट ही विषय पड़ता है. पृ० २१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001681
Book TitlePanchadhyayi Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherGranthprakashan Karyalay Indore
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy