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________________ सुबोधिनी टीका। बांसका दृष्टान्त देकर एक देशके परिणमनसे सर्व देशोंके परिणमन द्वारा शंकाकारने जो अखण्ड प्रदेशिता वस्तुमें सिद्ध की थी वह इस अन्वय व्यतिरेकके न बननेसे सिद्ध न हो सकी, इसलिये एक सत्ता ही एक बस्तुकी अखण्ड प्रदेशिता की नियामक है। __ एवं यकेपि दूरादपनेतव्या हि लक्षणाभासाः। यदकिश्चित्कारित्वादत्रानधिकारिणोऽनुक्ताः॥ ४७०॥ अर्थ----इसीप्रकार और भी जो लक्षणाभास हैं उन्हें भी दूरसे ही छोड़ देना चाहिये। क्योंकि उनसे किसी कार्यकी सिद्धि नहीं हो पाती, ऐसे अकिञ्चित्कर लक्षणभासोंका यहांपर हम उल्लेख भी नहीं करते हैं । उनका प्रयोग करना अधिकारसे बाहर है । काल-विचारकालः समयो यदि वा तद्देशे वर्तनाकृतिश्चात् । तेनाप्यखण्डितत्वाद्भवति सदेकं तदेकनययोगात् ॥ ४७१॥ अर्थ---काल, समय अथवा उस देश (वस्तु) में वर्तनारूप आकारका होना ये तीनों ही बातें एक हैं। उस कालसे भी वस्तु अखण्डित है। वस्तुमें यह अखण्डता द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षासे लाई जाती है । भावार्थ--यहां पर कालसे तात्पर्य काल द्रव्यका नहीं है किन्तु द्रव्य मात्रसे है, अथवा प्रत्येक वस्तुके कालसे है। जो काल द्रव्य है वह तो हर एक वस्तुके परिणमन में उदासीन कारण है परन्तु हर एक द्रव्यके परिणमनमें उपादान कारण स्वयं वह द्रव्य ही है। उसी परिणमनशील द्रव्यका यहां स्व-कालकी अपेक्षासे विचार किया जाता है। प्रत्येक वस्तुक प्रतिक्षण परिणमन होता रहता है। ऐसे अनादिकालसे अनन्त काल तक होनेवाले परिणमनोंके समुदायका नाम ही द्रव्य है । वस्तुकी एक समयकी अवस्था उस वस्तुसे अभिन्न है । वह प्रत्येक समयमें होनेवाली अवस्था ही उस वस्तुका काल है । उस कालकी अपेक्षासे भी वस्तु अखण्ड और एक है। इसी का सष्ट कथन-- अयमर्थः सन्मालामिह संस्थाप्य प्रवाहरूपेण । क्रमतो व्यस्तसमस्तैरितस्ततो वा विचारयन्तु वुधाः ॥४७२॥ तत्रैकावसरस्थं यद्यावद्यादृगस्ति सत्सर्वम् । सर्वावसरसमुदितं तत्तावत्तादृगस्ति सत्सर्वम् ॥ ४७३ ॥ अर्थ--उपर्युक्त कथनका स्पष्ट अर्थ यह है कि एक पदार्थ अनादिकालसे अनन्तकाल तक ( सदा ) नवीन २ पयोयोंको धारण करता रहता है । इसलिये पदार्थ . उन समस्त.... अवस्थाओंका समूह ही है । उस पर्याय समूहरूप पदार्थमाला पर बुद्धिमान पुरुष विचार : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001681
Book TitlePanchadhyayi Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherGranthprakashan Karyalay Indore
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size18 MB
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