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________________ - - अध्याय।। सुबोधनी टीका। ____ क्या छोटे बड़े भाइयों तथा मल्लोंके समान हैंअथ किं ज्येष्ठकनिष्ठनातृदयमिव मिथः सपक्षतया । किमथोपसुन्दसुन्दमल्लन्यायात्किलेतरेतरस्मात् ॥४८॥ अर्थ--अथवा जिस प्रकार बड़े छोटे दो भाई परस्पर प्रेमसे रहते हैं, उसी प्रकार क्या सत् और परिणाम आगे पीछे उत्पन्न होकर वर्तमानकालमें परस्पर अविरुद्ध रीतिसे रहते हैं ? अथवा जिस प्रकार * उपसन्द और सुन्द नामके दो मल्ल परस्पर एक दूसरेसे जय अपजय प्राप्त करते हुए अन्तमें मर गये उसी प्रकार क्या सत् और परिणाम भी परस्पर प्रतिद्वन्द्विता रखते हुए अन्तमें नष्ट हो जाते हैं ? क्या परत्वापरत्व तथा पूर्वापर दिशाओं के समान हैंकेवल मुपचारादिह भवति परत्वापरत्ववत्किमथ । . पूर्वापरदिग्द्वैतं यथा तथा दैतमिदमपेक्षतया ॥ ३४९ ॥ अर्थ-अथवा जिस प्रकार दो छोटे बड़े पुरुषों में परापर व्यवहार केवल उपचारसे होता है, उसी प्रकार क्या सत् और परिणाम भी उपचारसे कहे जाते हैं । अथवा जिस प्रकार पूर्व दिशा, पश्चिम दिशा आदि व्यवहार होता है, उसी प्रकार क्या सत् और परिणाम भी केवल अपेक्षा मात्रसे कहे जाते हैं । भावार्थ-बड़े की अपेक्षा छोटा, छोटेकी अपेक्षा बड़ा, यह केवल आपेक्षिक व्यवहार है । यदि छोटाबड़ापन वास्तविक हो तो छोटा छोटा रहना चाहिये और बड़ा बड़ा ही रहना चाहिये, परन्तु ऐसा नहीं है, जो छोटा कहलाता है वह भी अपनेसे छोटेकी अपेक्षासे बड़ा कहलाता है, अथवा जो बड़ा कहलाता है वह भी अपनेसे बड़ेकी अपेक्षासे छोटा कहलाता है । इसलिये वास्तवमें छोटापन अथवा बड़ापन कोई वस्तु नहीं है केवल व्यवहार कालकृत अपेक्षासे होनेवाला व्यवहार है । इसी प्रकार क्षेत्रकृत परापर व्यवहार होता है। जैसे-यह निकट है, यह दूर है इत्यादि । यह निकट और दूरका व्यवहार भी केवल परस्परकी अपेक्षासे होता है । वास्तवमें निकटता और दूरता कोई वस्तुभूत नहीं है । परत्वा परत्वके समान दिशायें भी काल्पनिक हैं । सूर्योदयकी अपेक्षासे पूर्व दिशा और सूर्यके छिपनेकी अपेक्षासे पश्चिम दिशाका व्यवहार होता है । इसी प्रकार सूर्यको दाहिनी भुजाकी * हितोपदेशमें ऐसी कथा प्रसिद्ध है कि सुन्द उपसुन्द नामके दो मल्लीन महादेवकी आराधना की, महादेव उनपर प्रसन्न हो गये, दोनोंने महादेवसे उनकी स्त्री पार्वतीको वरमें मांगा। महादेवने क्रोधपूर्वक उसे उनको दे दिया। फिर दोनों ही पार्वतीके लिये लड़ने लगे। महादेवन वृद्ध ब्राहाणका रूप रखकर उनसे कहा कि मो युद्ध में तुममेंसे विजय प्राप्त कर उसकी पार्वती होगी। दोनों ही ने इस वातको पसंद किया और क्षत्रिय पुत्र होने से दोनों ही लड़ने लों दोनों समान बलवासे ये इस लिये लड़ते२ दोनों ही मर गये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001681
Book TitlePanchadhyayi Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherGranthprakashan Karyalay Indore
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size18 MB
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