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________________ १.. पञ्चाध्यायी। [प्रथम अर्थ-अथवा जिस प्रकार कोई पुरुष शूरता, पराक्रम आदि गुणोंके धारण करनेसे कभी सिंह कहलाता है और सजनता, नम्रता आदि गुणोंके धारण करनेसे कभी साधु कहलाता है। एक ही पुरुष विवक्षाके अनुसार दो विशेषणोंवाला हो जाता है, अथवा उन दोनोंमें विवक्षित विशेषण कोटिमें आजाता है और अविवक्षित विशेष्य कोटिमें चला जाता है। क्या उसी प्रकार सत् और परिणाम भी विवक्षाके अनुसार कहे हुए किसी पदार्थके विशेषण हैं ? अर्थात् क्या इनका भी कोई विशेप्य और है ? क्या दो नाम और सव्येतर गोविषाणके समान हैंअथ किमनेकार्थत्वादेकं नामद्वयाङ्कितं किञ्चित् । अग्निर्वैश्वानर इव सव्येतरगोविषाणवत् किमथ ॥ ३४५ ॥ अर्थ-अथवा जिस प्रकार एक ही पदार्थ अनेक नामोंकी अपेक्षा रखनेसे अग्निवैश्वानरके समान दो नामोंसे कहा जाता है अर्थात् अग्निवै वानर आदि भेदोंसे एक ही अग्निके दो नाम (अनेक) हो जाते हैं उसी प्रकार क्या सत और परिणाम एक ही पदार्थके दो नाम हैं ? अथवा जिस प्रकार गौके दाये वाये (एक साथ) दो सींग होते हैं, उसी प्रकार क्या सत् और परिणाम भी किसी वस्तुके समान कालमें होनेवाले दो धर्म हैं ? क्या कच्ची और पकी हुई पृथ्वीके समान हैअथ किं काल विशेषादेका पूर्व ततोऽपरः पश्चात् । आमानामविशिष्टं पृथिवीत्वं तद्यथा तथा किमिति ॥३४६ ॥ अर्थ-अथवा जिस प्रकार कच्ची पृथ्वी ( कच्चा घड़ा ) पहले होती है, पीछे अग्निमें देनेसे वह पकी हुई हो जाती है। उसी प्रकार क्या सत् और परिणाम भी काल विशेषसे आगे पीछे होनेवाले हैं ? अर्थात् क्या इन दोनोंमेंसे कोई एक पहले होता है और दूसरा पीछे ? क्या दी सपत्नयोंके समान है--- अथ कि कालक्रमतोप्युत्पन्नं वर्तमानमिव चास्ति । भवति सपत्नीव्यमिह यथा मिथः प्रत्यनीकतया ॥ ३४७॥ अर्थ---अथवा जिस प्रकार किसी पुरुषकी आगे पीछे परणी हुई दो स्त्रियां (सौते) एक कालमें परस्पर विरुद्धरूपसे रहती हैं । उसी प्रकार क्या सत् और परिणाम काल क्रमसे आगे पीछे उत्पन्न होते हुए भी एक कालमें-वर्तमानकालमें परस्पर विरुद्धरूपसे रहते हैं ? अर्थात् भिन्न कालमें उत्पन्न होकर भी दोनों एक कालमें समान अधिकारी बनकर परस्पर विरुाहना धारण करने हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001681
Book TitlePanchadhyayi Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherGranthprakashan Karyalay Indore
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size18 MB
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