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सूत्र ३५ ।] सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् । जीव नोजीव अजीव और नोअजीव इन चार विकल्पोंको एक वचनके ही द्वारा बताया है । परन्तु इसी तरह से द्विवचन और बहुवचनके द्वारा भी समझ लेना चाहिये ।
सर्व संग्रहनय भी इसी तरह चारों विकल्पोंको ग्रहण करता होगा ? ऐसा संदेह किसीको न हो जाय, इसलिये उसकी विशेषताको स्पष्ट करते हैं, कि सर्वसंग्रहनय जीवः नोनीवः अजीवः नोअजीवः इन एक वचनरूप विकल्पोंको तथा जीवौ नोजीवौ अजीवौ नोअनीवौ इन द्विवचनरूप विकल्पोंको ग्रहण नहीं करता । क्योंकि यह नय यथार्थवाही हैजैसा वस्तुका स्वरूप है, वैसा ही ग्रहण करता है । चारों गतिवर्ती संसारी और सिद्ध ऐसे पाँचों प्रकारके जीवोंकी संख्या सब मिलकर अनन्त है । अतएव यह नय बहुवचनको ही विषय करता है । यद्यपि इसके विकल्पोंका · आकार पहले अनुसार ही है, परन्तु उसका अर्थ केवल बहुवचनरूप ही है, ऐसा समझ लेना चाहिये । इसी लिये बाकीके जो नैगमादिक नय हैं, वे द्विवचनरूप और एकवचनरूप भी विकल्पोंको विषय किया करते हैं, ऐसा अर्थ स्पष्ट ही हो जाता है। जिस समय जीव शब्दका अर्थ एक जीव द्रव्य ऐसा अभीष्ट हो, वहाँ एकवचनका प्रयोग होता है, परन्तु जहाँ जातिकी अपेक्षा हो, वहाँ उस एक पदार्थके अभिधेय रहते हुए भी बहुवचनका प्रयोग हो सकता है। इसके सिवाय जहाँपर जीव शब्दका अर्थ बहुतसे प्राणी ऐसा दिखाना अभिप्रेत हो, वहाँपर भी बहुवचनका प्रयोग हुआ करता है । अतएव संग्रहनय बहुवचनरूप ही विकल्पोंका आश्रय लेकर प्रवृत्त हुआ करता है, और बाकीके नय एकवचनरूप द्विवचनरूप और बहुवचनरूप तीनों ही तरहके विकल्पोंका आश्रय लेकर प्रवृत्त हो सकते हैं। क्योंकि वे सर्वाकारग्राही हैं । यहाँपर जिस तरह जीव शब्दके विधिप्रतिषेधको लेकर नयोंका अनुगत अर्थ बताया है, उसी प्रकार तत्त्व-बुभुत्सुओंको धर्मास्तिकायादिक अन्य सभी पदार्थोंके विषयमें भी उक्त सम्पूर्ण नयोंका अनुगम कर लेना चाहिये।
___ ऊपर वस्तुस्वरूपको विषय करनेवाले ज्ञानके आठ भेद बताये हैं। उनमें से किस किस ज्ञानमें कौन कौनसे नयकी प्रवृत्ति हुआ करती है, इस बातको बतानेके लिये आगेका प्रकरण लिखते हैं
भाष्यम्-अत्राह-अथ पञ्चानां ज्ञानानां सविपर्ययाणां कानि को नयः श्रयत इति । अत्रोच्यते-नैगमादयस्त्रयः सर्वाण्यष्टौ श्रयन्ते । ऋजुसूत्रनयो मतिज्ञानमत्यज्ञानवानि षटू । अत्राह ।-कस्मान्मति सविपर्ययां न श्रयत इति । अत्रोच्यते ।-श्रुतस्य सविपर्ययस्योपग्रहत्वात् । शब्दनयस्तु द्वे एव श्रुतज्ञानकेवलज्ञाने श्रयते। अत्राह । कस्मान्नेत
१--जीवौ नोजीवौ अजीवौ नो अजीवौ । २-जीवाः नोजीवाः अजीवाः नोअजीवाः ।
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