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________________ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम [प्रथमोऽध्यायः इनके विषय भी कमसे पाँच हैं-स्पर्श रस गंध वर्ण और शब्द, जैसा कि आगे चलकर बतावेंगे । इन पाँचों ही को अपने अपने विषयोंका जो ज्ञान होता है उसको, इन्द्रियनिमित्तक कहते हैं। मनकी प्रवृत्तियोंको अथवा विशेष विचारोंको यद्वा समृहरूप ज्ञानको अनिन्द्रिय निमित्तक कहते हैं। इस प्रकार निमित्तभेदसे मतिज्ञानके भेद बताकर स्वरूप अथवा विषयकी अपेक्षासे भेद बतानेको सूत्र कहते हैं सूत्र-अवग्रहेहापायधारणाः ॥ १५ ॥ भाष्यम्-तदेतन्मतिज्ञानमुभयनिमित्तमप्येकशश्चतुर्विधं भवति । तद्यथा-अवग्रह ईहापायो धारणा चेति । तत्राव्यक्तं यथास्वमिन्द्रियैर्विषयाणामालोचनावधारणमवग्रहः । अवग्रहो ग्रहणमालोचनमवधारणमित्यनान्तरम् । अवगृहीते विषयार्थैकदेशाच्छेषानुगमनं निश्चयविशेषजिज्ञासा ईहा । ईहा ऊहा तर्कः परीक्षा विचारणा जिज्ञासेत्यनान्तरम् । अवगृहीते विषये सम्यगसम्यागति गुणदोषविचारणाध्यवसायापनोदोऽपायः । अपायोs पगमः अपनोदः अपव्याधः अपेतमपगतमपविद्धमपनुत्तमित्यनर्थान्तरम् । धारणा प्रतिपत्तिर्यथास्वं मत्यवस्थानमयधारणं च । धारणा प्रतिपत्तिरवधारणमवस्थानं निश्चयोऽवगमः अवबोध इत्यनर्थान्तरम् ॥ अर्थ-ऊपर इन्द्रियनिमित्तक और अनिन्द्रियनिमित्तक इस तरह दो प्रकारका जो मतिज्ञान बताया है, उसमें प्रत्येकके चार चार भेद हैं ।-अवग्रह ईहा अपाय और धारणा । अपनी अपनी इन्द्रियोंके द्वारा यथायोग्य विषयोंका अव्यक्त रूपसे जो आलोचनात्मक अवधारण-ग्रहण होता है, उसको अवग्रह कहते हैं। अवग्रह ग्रहण आलोचन और अवधारण ये एक ही अर्थके वाचक शब्द हैं । अवग्रहके द्वारा जिस पदार्थके एक देशका ग्रहण कर लिया गया है, उसीके शेष अंशको भी जाननेके लिये जो प्रवृत्ति होती है, अर्थात् उस पदार्थका विशेष रूपसे निश्चय करनेके लिये जो जिज्ञासा-चेष्टा विशेष होती है, उसीको ईहा कहते हैं । ईहा ऊहा तर्क परीक्षा विचारणा और जिज्ञासा ये सब शब्द एक ही अर्थके वाचक हैं। 'अक्ग्रह तथा ईहाके द्वारा जाने हुए पदार्थके विषयमें यह समीचीन है, अथवा असमीचीन है, इस तरहसे गुणदोषोंका विचार करनेके लिये जो निश्चयरूप ज्ञानकी प्रवृत्ति होती है, उसको अपाय कहते हैं । अपाय अपगम अपनोद अपव्याध अपेत अपगत अपविद्ध और अपनुत्त ये सभी शब्द एक अर्थके वाचक हैं । धारणा नाम प्रतिपत्तिका है। अर्थात् अपने योग्य पदार्थका जो बोध हुआ है, उसका अधिक कालतक स्थिर रहना इसको धारणा कहते हैं । पारणा प्रतिपत्ति अवधारण अवस्थान निश्चय अवगम और अवबोध ये सब शब्द भी एक ही अर्थके वाचक हैं । भावार्थ-मतिज्ञानके चार भेद हैं-अवग्रह ईहा अपाय और धारणा । इन्द्रिय और पदार्थका योग्य क्षेत्रमें अवस्थान होनेपर सबसे पहले दर्शन होता है, जोकि निर्विकल्प अथवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001680
Book TitleSabhasyatattvarthadhigamsutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorKhubchand Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1932
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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