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सूत्र ७ ।]
सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् । अनन्तर समयमेंही दूसरे जीव भी सिद्धि प्राप्त करते हैं या क्या ? तथा यदि परस्परमें व्यवधान पाया जाता है, तो कितने समयसे कितने समय तकका ? इसीका खुलासा करनेके लिये कहते हैं, कि जीव अनन्तर भी सिद्धिको प्राप्त किया करते हैं और सान्तर भी सिद्धिको प्राप्त करते हैं । इनमेंसे अनन्तरसिद्धिके कालका जघन्य प्रमाण दो समय और उत्कृष्ट प्रमाण आठ समयका है । तथा सान्तरसिद्धिके कालका जघन्य प्रमाण एक समय और उत्कृष्ट प्रमाण छह महीना है।
भावार्थ-एक समयमें जितने जीव मोक्षको जानेवाले हैं, उनके चले जानेपर दूसरे समयमें कोई भी जीव मोक्षको न जाय, ऐसा नहीं हो सकता । उस समयके अनन्तर दूसरे समयमें भी अवश्य ही जीव मोक्ष प्राप्त किया करते हैं। इसीको अनन्तरसिद्धि कहते हैं। इसका प्रमाण दो समयसे आठ समय तकका है। अर्थात् अव्यवधानरूपसे आठ समयतक जीव बराबर मोक्षको जासकते हैं। इससे अधिक कालतक नहीं जासकते । आठ समयके बाद व्यवधान पड़ जाता है । उस व्यवधानके कालका प्रमाण एक समयसे लेकर छह महीनातकका है। ___संख्या-प्रत्येक समयमें कमसे कम कितने और ज्यादःसे ज्यादः कितने जीव मोक्षको प्राप्त किया करते हैं, इसके प्रमाणको संख्या कहते हैं । इसकी अपेक्षासे भी सिद्धोंका भेद कहा जासकता है । यथा अमुक समयमें इतने जीव मोक्षको गये और अमुक समयमें इतने, इत्यादि । इसके लिये यह जाननेकी आवश्यकता है, कि एक समयमें कितने जीव मोक्षको जासकते हैं । तो इसका प्रमाण कमसे कम एक और ज्यादःसे ज्यादः एकसौ आठ है।
भावार्थ-एक समयमें सिद्धि प्राप्त करनेवाले जीवोंकी संख्याका जघन्य प्रमाण एक और उत्कृष्ट प्रमाण १०८ है ।
भाष्यम्-अल्पबहुत्वम् ।-एषां क्षेत्रादीनामेकादशानामनुयोगद्वाराणामल्पबहुत्वं वाच्यम् । तद्यथा ।
क्षेत्रसिद्धानां जन्मतः संहरणतश्च कर्मभूमिसिद्धाश्चाकर्मभूमिसिद्धाश्च सर्व स्तोकाः संहरणसिद्धाः जन्मतोऽसंख्येगुणाः । संहरणं द्विविधम्-परकृतं स्वयंकृतं च । परकृतं देवकर्मणा चारणविद्याधरैश्च । स्वयंकृतं चारणविद्याधराणामेव । एषां च क्षेत्राणां विभागः कर्मभूमिरकर्मभूमिःसमुद्रा द्वीपाऊर्ध्वमधस्तिर्यगिति लोकत्रयम्। तत्र सर्वस्तोका ऊर्ध्वलोकसिद्धाः, • अधोलोकसिद्धाः संख्येयगुणाः, तिर्यग्लोकसिद्धाः संख्येयगुणाः, सर्वस्तोकाः समुद्रसिद्धाः, द्वीपसिद्धाः संख्येयगुणाः । एवं तापव्यजिते व्यजितेऽपि सर्वस्तोका लवणसिद्धा कालोदसिद्धाः संख्येयगुणाः, जम्बूद्वीपसिद्धाः सख्येयगुणाः, धातकीखण्डसिद्धाः संख्ययगुणाः, पुष्करार्धसिद्धाः संख्येयगुणा इति ।
अर्थ-अल्पबहुत्व-नाम हीनाधिकताका है । ऊपर क्षेत्र आदि ग्यारह अनुयोगद्वार बताये हैं, जिनसे कि सिद्ध-जीवोंकी विशेषताका वर्णन किया जा सकता है । इनमें से किस
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