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________________ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम [ नषमोऽध्यायः बकुशी व्युगिन्यते । ततोऽसंख्येयानि स्थामानि गत्वा प्रतिसेवनाकुशीलो व्युच्छिद्यते। ततोs. संख्येयानि स्थानानि गत्वा कपायकुशीलो व्युच्छिद्यते। अतऊर्ध्वमकषायस्थानानि निर्ग्रन्थः प्रतिपद्यते। सोऽप्यसंख्येयानि स्थानानि गत्वा व्युच्छियते । अत कलमेकमेव स्थानं गत्वा निर्मन्थस्नातको निर्वाण प्रामोतीति एषां संथमलब्धिरनन्तानन्तगुणा भवतीति ॥ इति तत्त्वार्थाधिगमेऽर्हत्प्रवचनसंग्रहे नवमोऽध्यायः समाप्तः ॥ अर्थ-कषायके निमित्तसे होनेवाले संयमके स्थान-दर्ने असंख्यात हैं । इनमेंसे सब से जघन्य लब्धिरूप संयमके स्थान पुलाक और कषायकुशीलके हुआ करते हैं । ये दोनों ही निर्ग्रन्थ जघन्य स्थानसे ऊपर असंख्यात संयम-स्थानों तक साथ साथ आरोहण किया करते हैं, आगे चलकर पुलाककी व्युच्छित्ति हो जाती है, किन्तु अकेला कषायकुशील वहाँसे भी आगे असंख्यात स्थानों तक आरोहण करता चला जाता है। इसके ऊपरके असंख्यात संयम-स्थान ऐसे हैं, कि जिनपर कषायकुशील प्रतिसेवनाकुशील और बकुश तीनों निर्ग्रन्थ साथ साथ ी आरोहण किया करते हैं । इनके ऊपर कुछ स्थान चलकर बकुशकी व्युच्छित्ति हो जाती है । उससे भी उपर असंख्यात स्थान चलकर प्रतिसेवनाकुशलकी व्युच्छित्ति हो जाती है, तथा इसके भी ऊपर असंख्यात स्थानतक आरोहण करके कषायकुशीलकी व्युच्छित्ति हो जाती है। यहाँसे ऊपर सब अकषाय-स्थान ही हैं । उनको केवल निर्ग्रन्थ ही प्राप्त हुआ करते हैं। किन्तु वह भी असंख्यात स्थानोंतक आरोहण करके व्युच्छित्तिको प्राप्त हो जाया करते हैं । इसके ऊपर एक ही स्थान है, कि जहाँपर निर्ग्रन्थस्नातक पहुँचता है । इस स्थानपर पहुँचकर स्नातकनिर्ग्रन्थ निर्वाण-पदको प्राप्त हुआ करते हैं। इन निर्ग्रन्थोंको जो संयमको लब्धि हुआ करती है, उसकी विशुद्धि उत्तरोत्तर अनन्तानन्तगुणी हुआ करती है। इसप्रकार तत्त्वार्थाधिगमभाष्यका नववा अध्याय पूर्ण हुआ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001680
Book TitleSabhasyatattvarthadhigamsutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorKhubchand Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1932
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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