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सूत्र ४]
सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् । यहाँपर यह शंका हो सकती है, कि जब चारों लब्धियोंका मिलना भी सम्यक्त्वकी उत्पत्तिके लिये आवश्यक बताया है, तब उनमें से देशनालब्धिके विना ही वह किस प्रकार उत्पन्न हो सकता है ? इसका उत्तर यह है, कि इसमें केवल साक्षात् असाक्षात् का ही भेद है। साक्षात् परोपदेशके मिलनेपर जो तत्वार्थका श्रद्धान होता है, उसको अधिगमन कहते हैं और साक्षात् परोपदेशके न मिलनेपर जो उत्पन्न होता है, उसको निसर्गज कहते हैं । अनादिकालसे अब तक जिसको कभी भी देशनाका निमित्त नहीं मिला है, उसको सम्यग्दर्शन नहीं हो सकता, किंतु जिसको देशनाके मिलनेपर भी करणलब्धिके न होनेसे सम्यक्त्व प्राप्त नहीं हुआ है, उसको ही कालान्तरमें और भवान्तरमें विना परोपदेशके ही करणलब्धिके भेद-अपूर्वकरणके होनेपर सम्यक्त्व उत्पन्न हो सकता है । इसीको निसर्गज सम्यग्दर्शन कहते हैं।
भाष्य--अत्राह, तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनमित्युक्तम् । तत्र किं तत्त्वमिति? अत्रोच्यते
अर्थः---ऊपर तत्त्वार्थके श्रद्धानको सम्यग्दर्शन बताया है, अतएव उसमें यह शंका होती है, कि वे तत्त्व कितने हैं और उनका क्या स्वरूप है, कि जिनके श्रद्धानसे सम्यग्दर्शन होता है ? अतएव इस शंकाको दूर करने के लिये-तत्त्वोंको गिनानेके लिये सूत्र कहते हैं
सूत्र-जीवाजीवास्रवबंधसंवरनिर्जरामोक्षास्तत्त्वम् ॥४॥
भाष्यम्-जीवा अजीवा आस्रवा बन्धः संवरो निर्जरा मोक्ष इत्येष सप्तविधोऽर्थस्तत्त्वम् । एते वा सप्तपदार्थास्तत्त्वानि । ताल्लक्षणतो विधानतश्च पुरस्ताद्विस्तरेणोपदेश्यामः॥ . अर्थ-जीव अजीव आना बंध संवर निर्जरा और मोक्ष यह सात-प्रकारका अर्थ तत्त्व समझना चाहिये । अथवा इन सात पदार्थोंको ही तत्व कहते हैं। इनका लक्षण और भेद कथनके द्वारा आगे चलकर विस्तारसे वर्णन किया जायगा।
भावार्थ-~-मूलभे तत्त्व दो ही हैं, एक जीव दूसरा अजीव । सर्व सामान्यकी अपेक्षा जीवद्रव्यका एक ही भेद है । अनीवके पाँच भेद हैं-पगल धर्म अधर्म आकाश
और काल । इनका लक्षण आदि बतावेंगे । इन्हीं छहको षड्द्रव्य कहते हैं । किंत इतनेसे ही मोक्षमार्ग मालम नहीं होता । अतएव सात तत्त्वोंको भी जानना चाहिये । ये सात तत्त्व जीव और अजीवके संयोगसे ही निष्पन्न होते हैं। तथा यहाँपर अजीव शब्दसे मुख्यतया पुद्गलेका ग्रहण करना चाहिये । संक्षेपमें इन सातोंका स्वरूप इस प्रकार है
जो चेतना गणसे यक्त है, अथवा जो ज्ञान और दर्शनरूप उपयोगको धारण करनेवाला है उसको जीव कहते हैं । जो इस जानने और देखनेकी शक्तिसे रहित है उसको अजीव कहते हैं । जीव और अनीका संयोग होनेपर नवीन कॉर्माण
१-" भेदः साक्षादसाक्षाच्च "-तत्त्वार्थसार-अमृतचंद्रसूरि । २ –जो रूपरसगंधस्पर्शसे युक्त है उसको पुद्गल कहते हैं । कर्म पुद्गल द्रव्यकी ही एक पर्याय विशेष है । ३-- पुद्गलका । ४----पुद्गलके २३ भेदों से जो स्कन्ध कर्मरूप परिणमन करनेकी योग्यता रखते हैं, उनको कार्माणवर्गणा कहते हैं ।
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