SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 381
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६६ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् [ अष्टमोऽध्यायः अर्थ-यहाँपर सूत्रमें आद्य शब्दका जो पाठ किया है, उससे प्रकृतिबन्धका ग्रहण करना चाहिये । क्योंकि पूर्व सूत्रमें चार प्रकारके बन्धोंका जो उल्लेख किया है, उसमें सबसे पहले प्रकृति शब्दका ही पाठ है । अतएव उस क्रमके अनुसार पहला प्रकृतिबंध ही लिया जा सकता है । तदनुसार पहला प्रकृतिबंध आठ प्रकारका है । यथा--ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयुष्क, नाम, गोत्र, और अन्तराय । भावार्थ-जो ज्ञानको आवृत-आच्छादित करे, उसको ज्ञानावरण और जो दर्शनको आवृत करे, उसको दर्शनावरण कहते हैं । अर्थात् जिस कर्मकी प्रकृति ही ऐसी है-बंधके समय उसमें ऐसा ही स्वभाव पड़ गया है, कि वह आत्माके ज्ञानगुणको आवृत करे, उसको ज्ञानावरण कहते हैं। इसी प्रकार दर्शनावरण आदिके विषयमें समझना चाहिये । जो सुख दुखःका वेदन–अनुभव कराता है, उसको वेदनीय कहते हैं, जो आत्माको मोहित करता है, उसको मोहनीय कहते हैं। जो परभव तक आत्माके साथ जाता है, अथवा जो आत्माको परलोकमें ले जानेवाला है, उसको आयु अथवा आयुष्क कहते हैं। जिसके निमित्तसे जीवके अनेक संज्ञाकर्म हों, उसको नाम कहते हैं। जिसके निमित्तसे जीवका प्रशस्त अथवा अप्रशस्त व्यव. हार हो, उसको गोत्र कहते हैं, और जो विघ्न डालनेवाला है, उसको अन्तराय कहते हैं । इनके उत्तरभेदोंको बतानेके लिये सूत्र कहते हैं: सूत्र-पञ्चनवद्ध्यष्टाविंशतिचतुर्द्विचत्वारिंशद्विपंचभेदा यथाक्रमम् ॥ ६॥ भाष्यम्-स एष प्रकृतिबन्धोऽष्टविघोऽपि पुनरेकशः पञ्चभेदः नवभेदः द्विभेदः अष्टाविं. शतिभेदः चतुर्भेदः द्विचत्वारिंशद्भदः द्विभेदः पञ्चभेद इति यथाक्रमं प्रत्येतव्यम् ॥ इत उत्तरं यद्वक्ष्यामः । तद्यथा __ अर्थ-ऊपर जो आठ प्रकारका प्रकृतिबन्ध बताया है, उनमें से प्रत्येकके उत्तरभेद क्रमसे इस प्रकार हैं ।-ज्ञानावरणके पाँच भेद, दर्शनावरणके नौ भेद, वेदनीयके दो भेद, मोहनीयके अट्ठाईस भेद, आयुष्कके चार भेद, नाम कर्मके ब्यालीस भेद, गोत्रकर्मके दो भेद, और अन्तरायके पाँच भेद । इस प्रकार आठों कर्मोंके क्रमसे ये उत्तरभेद हैं । इन भेदोंको स्पष्टरूपसे बतानेके लिये आगे जैसा कुछ वर्णन करेंगे तदनुसार उनका विशेष स्वरूप समझना चाहिये । जैसे कि ज्ञानावरणके पाँच भेद कौनसे हैं ! तथा दर्शनावरणके नौ भेद कौनसे हैं ? इत्यादि । क्रमसे इस बातको बतानेके लिये पहले ज्ञानावरणके पाँच भेदोंको बतानेवाला सत्र कहते हैं। १-सबका अर्थ नामके अनुसार समझ लेना चाहिये । यथा-ज्ञानमावृणोति, दर्शनमावृणोति, वेदयति इति वेदनीयम, मोहयतीति मोहनीयम्, एति परभवमिति आयुः, नमतीति नाम, गूयते शब्दयते इति गोत्रम्, अन्तः मध्ये एति इति अन्तरायम् । इनका विशेष खुलासा गोम्मटसार कर्मकाण्डमें देखना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001680
Book TitleSabhasyatattvarthadhigamsutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorKhubchand Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1932
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy