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सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् ।
सूत्र - मत्यादीनाम् ॥ ७ ॥
भाष्यम् - ज्ञानावरणं पञ्चविधं भवति । मत्यादीनां ज्ञानानामावरणानि पञ्चविकल्पांचेकश इति ॥
सूत्र ६-७-८-९ ।]
अर्थ - - पहले प्रकृतिबन्ध -- ज्ञानावरणकर्मके पाँच भेद हैं । क्योंकि ज्ञानके पाँच भेदमति श्रुत अवधि मन:पर्यय और केवल पहले अध्यायमें बता चुके हैं । अतएव उनको आवृत करनेवाले कर्म भी पाँच ही हैं । अतएव ज्ञानके वाचक प्रत्येक मत्यादिक शब्द के साथ आवरण शब्दको जोड़ देना चाहिये । यथा - मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवविज्ञानावरण, मन:पर्ययज्ञानावरण, और केवलज्ञानावरण ।
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इसप्रकार ज्ञानावरण के पाँच भेदोंको बताकर क्रमानुसार दर्शनावरणके नौ भेदोंको बतानेके लिये सूत्र कहते हैं—
सूत्र - चक्षुरचक्षुरवधिकेवलानां निद्रानिद्रानिद्रा प्रचलाप्रचलाप्रचलास्त्यानगृद्धिवेदनीयानि च ॥ ८ ॥
भाष्यम् - चक्षुर्दर्शनावारणं, अचक्षुर्दर्शनावरणं, अवधिदर्शनावरणं, केवलदर्शनावरणं, निद्रावेदनीयम्, निद्रानिद्रावेदनीयम्, प्रचला वेदनीयम्, प्रचलाप्रचलावेदनीयम्, स्त्यानगृद्धिवेदनीयमिति दर्शनावरणं नवभेदं भवति ॥
अर्थ-दर्शनावरण कर्मके नौ भेद हैं। - चक्षुर्दर्शनावरण, अचक्षुर्दर्शनावरण, अवधिदर्शनावरण, केवलदर्शनावरण, निद्रावेदनीय, निद्रानिद्रावेदनीय, प्रचलावेदनीय, प्रचलाप्रचलावेदनीय, और स्त्यानगृद्धिवेदनीय ।
भावार्थ - इस सूत्र में दो वाक्य हैं । पहले वाक्यके साथ दर्शनावरण शब्दका प्रयोग करना चाहिये। किंतु दूसरे वाक्य के साथ उसका प्रयोग करने की आवश्यकता नहीं है । क्योंकि उसके अन्तमें वेदनीय शब्दका प्रयोग किया है । इसके अन्तमें पठित वेदनीय शब्दको वाक्य के प्रत्येक शब्द के साथ जोड लेना चाहिये । जैसे कि निद्रावेदनीय आदि ।
अब क्रमानुनार वेदनीय कर्मके दो भेदों को बताने के लिये सूत्र कहते हैं-सूत्र - सदसद्ये ॥
९॥
भाष्यम् -- सद्वेद्यं असद्वेद्यं च वेदनीयं द्विभेदं भवति ॥
अर्थ - वेदनीय कर्मके दो भेद हैं । - सद्वेद्य - सातवेदनीय और असद्वेद्य-असात वेदनीय | भावार्थ — जिसके उदयसे सुखरूप अनुभव होता है, उसको सद्वेद्य कहते हैं, और जिसके उदयसे दुःखरूप अनुभव हो, उसको असद्वेद्य कहते है । संसारका कोई भी पदार्थ न इष्ट है और न अनिष्ट | परन्तु ज्ञानावरणकर्मके उदयसे अज्ञानी हुआ और मोहनीय कर्म
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