SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 374
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् । सूत्र - सचित्तसम्बद्धसंमिश्राभिषवदुष्पकाहाराः ॥ ३० ॥ भाष्यम - सचित्ताहारः सचित्तसम्बद्धाहारः सचित्तसंमिश्राहारः अभिषवाहारः दुष्पकाहार इत्येते पचोपभोग व्रतस्यातिचारा भवन्ति ॥ अर्थ — उपभोगपरिभोगपरिमाणव्रत के पाँच अतीचार हैं, जो कि आहार करनेरूप हैं । यथा—सचित्ताहार, सचित्तसम्बद्धाहार, सचित्तमिश्राहार, अभिषवाहार, और दुष्पवाहार । I चित्त सहित - सजीव - हरितकाय वनस्पतिका भक्षण करना, जिसके भक्षणका त्याग कर दिया है, उसको कचित् कदाचित् प्रमाद या अज्ञानके वशसे ग्रहण कर लेना, सचित्ताहार नामका अतीचार है । सचित्तसे जिसका सम्बन्ध हो रहा है, उसका भक्षण करना, जैसे कि हरितकाय केले पत्र आदिपर रक्खी हुई, या उससे ढँकी हुई वस्तुको ग्रहण करना, सचित्तस - म्बद्ध नामका अतीचार है । अचित्त के साथ साथ मिली हुई सचित्त वस्तुको भी भक्षण कर लेना, सचित्तमिश्राहार नामका अतीचार है । गरिष्ठ पुष्ट और इन्द्रियों को बलवान करनेवाला रसयुक्त पदार्थ अभिषव कहा जाता है । इस तरह के पदार्थों का सेवन करना, अभिषवाहार नामका अतीचार है । जो योग्य रीतिसे पका न हो, ऐसे भोजनको दुष्पक कहते हैं । जैसे कि जली हुई या अर्धपक्क रोटी दाल आदि । इस तरहके पदार्थका भक्षण करना दुष्पक्काहार नामका अतीचार है । I 1 सूत्र २९-३०-३१ । ] भावार्थ - प्रमाद के योग से इस तरह के छोड़े हुए अथवा परिमित पदार्थोंका ग्रहण कर लेना- भक्षण करना उपभोगपरिभोगपरिमाणव्रतका अतीचार है । ये पाँच भेदरूप हैं, जैसा कि ऊपर दिखाया गया है । इनके निमित्तसे व्रतकी भंगाभंग अवस्था होती है । अतएव इनको अतीचार कहा है । क्योंकि वह व्रतको भंग करनेके लिये उसका भक्षण नहीं करता, किन्तु भोजनमें आजानेपर कदाचित् प्रमादसे उसका ग्रहण हो जाता । अतएव उसकी प्रवृत्ति व्रतसापेक्ष है । अतिथिसंविभागव्रतके अतीचारोंको बताते हैं ३४९ सूत्र - सचित्तनिक्षेप पिधानपरव्यपदेशमात्सर्यकालातिक्रमाः ॥३१ ॥ भाष्यम् - अन्नादर्द्रव्यजातस्य सचित्ते निक्षेपः सचित्तपिधानं परस्येदमिति परव्यपदेशः मात्सर्य कालातिक्रम इत्येते पञ्चातिथिसंविभागस्यातिचारा भवन्ति ॥ अर्थ — अतिथिसंविभागव्रत के पाँच अतीचार इस प्रकार हैं- सचित्तनिक्षेप, सचित्तपि - धान, परव्यपदेश, मात्सर्य, और कालातिक्रम । अन्न आदि देने योग्य जो कोई भी वस्तु हो, उसको सचित्त पदार्थ - पत्र आदिके ऊपर रखकर देना, सचित्तनिक्षेप नामका अतीचार है । इसी तरह उस देय आहार्य - सामग्रीको सचित्त पत्र आदिसे ढँक कर देना, सचित्तपिधान नामका अतीचार है । यह हमारा नहीं है, दूसरेका है, ऐसा कहना, अथवा स्वयं दानमें प्रवृत्त न होकर दूसरे से कहना कि तुम दान करो, यद्वा स्त्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001680
Book TitleSabhasyatattvarthadhigamsutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorKhubchand Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1932
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy