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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
[ सप्तमोऽध्यायः
तथा मनमें जो चिन्तवन आदि करना चाहिये, सो न करके अन्य रागादियुक्त दूषित विचारोंका अथवा संकल्प विकल्पोंका होना मनोदुष्प्रणिधान है । सामायिकमें आदर-भक्ति-रुचिका न होना, अतएव उसको ज्यों त्यों करके बेगारकी तरह परा कर देना, अनादर नामका अतीचार है। सामायिककी विधि या समय अथवा उसके पाठादिको भूल जाना, यद्वा सामायिक करनेकी ही याद न रहना, या आज सामायिक की है या नहीं, सो स्मरण न रहना, स्मृत्यनुपस्थान नामका अतीचार है। इस प्रकार सामायिकके पाँच अतीचार हैं, जिनको कि टालकर सामायिक करना चाहिये, जिससे कि उसका एक अंशतः भी भंग न हो ।
पौषधोपवासव्रतके अतीचारोंको गिनाते हैं:
सूत्र-अप्रत्यवेक्षिताप्रमार्जितोत्सर्गादाननिक्षेपसंस्तारोपक्रमणानादरस्मृत्यनुपस्थापनानि ॥ २९ ॥
भाष्यम्-अप्रत्यवेक्षिताप्रमार्जिते उत्सर्गः अप्रत्यवेक्षिताप्रमार्जितस्यादाननिक्षेपौ अप्रत्यवेक्षिताप्रमार्जितः संस्तारोपक्रमः अनादरः स्मृत्यनुपस्थानमित्येते पञ्च पौषधोपवासस्यातिचारा भवन्ति ॥
- अर्थ-अप्रत्यवेक्षित-दृष्टिके द्वारा जिसको अच्छी तरहसे देखा नहीं है, और अप्रमार्जित-जिसको पिच्छी आदिके द्वारा भले प्रकार शोधा नहीं है, ऐसे स्थानपर मलमूत्रादिका परित्याग करना अप्रत्यवेक्षिताप्रमार्जितोत्सर्ग नामका अतीचार है । इसी प्रकार विना देखे शोधे स्थानपर अथवा विना देखी शोधी वस्तुको यों ही रख देना, या उठा लेना अथवा पटक देना, या फेंकना अप्रत्यवेक्षिताप्रमार्जितादाननिक्षेप नामका अतीचार है । शयनासनके आश्रयभूत स्थानको या विस्तर आदिको विना देखे शोधे ही काममें ले लेना, उसपर बैठ जाना, लेट जाना या सो जाना, अप्रत्यवेक्षिताप्रमार्जितसंस्तोरापक्रम नामका अतीचार है । पौषधोपवासके करनेमें भक्तिभावका न होना अनादर नामका अतीचार है। पौषध-पर्व दिनको भूल जाना, अथवा उस दिन उपवासकी याद न रहना, या उस दिनके विशेष कर्त्तव्यको याद न रखना स्मृत्यनुपस्थान नामका अतीचार है। इस तरह पौषधोपवास व्रतके पाँच अतीचार हैं।
भावार्थ-उपवास आदि जो किया जाता है, सो प्रमादादि दोषोंको नष्ट कर रत्नत्रयधर्मको जागृत करनेके लिये ही किया जाता है। अतएव पर्वके दिन उपवास धारण करनेवालेको अप्रमत्त होकर रुचिपूर्वक उत्साहके साथ विधियुक्त सम्पूर्ण कार्य करने चाहिये । प्रमाद अरुचि अथवा विधिके भूल जानेसे उसका अंशतः भंग हो जाता है । इसीसे ये पाँच अतीचार-दोष उपस्थित होते हैं । अर्थात् पौषधोपवास करनेवालेको भूमिको देख शोध करके ही मलोत्सर्ग करना चाहिये, अन्यथा-प्रमादवश वैसा न करनेपर पहला अतीचार होता है । इसी तरह पाँचों अतीचारोंके विषयमें समझना चाहिये।
भोगोपभोगव्रतके अतीचारोंको बताते हैं
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