SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 369
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रायचन्द्र जैनशास्त्रमालायाम् [ सप्तमोऽध्यायः 1 I चोरोंमें हिरण्यादिकके लेनदेनका व्यवहार करना । यह मालूम होते हुए कि यह चोर है- सदा चोरीका काम करनेवाला है, उसको किस्त देना अथवा ऐसा ही कोई दूसरा व्यवहार करना स्तेनप्रयोग नामका अतीचार है । चोर चोरी करके जो द्रव्य लावे, उसको विनामूल्य अथवा मूल्य देकर ले लेना तदाहृतादान नामका अतीचार है । विरुद्ध राज्यातिक्रम नामका भी एक अस्तेय व्रतका अतीचार है । राज्यके विरुद्ध होनेपर सभी वस्तुका ग्रहण स्तेययुक्त हो जाता है । अर्थात् जिस विषयमें या जिस कार्यके करनेमें राज्य विरुद्ध है - राज्यकी आज्ञा उस कार्य करने की नहीं है, फिर भी उसका - आज्ञाका उल्लंघन करके उस कार्यको करना विरुद्धराज्यातिक्रम है। जैसे कि चोरीसे मादक या जहरीली वस्तुका बेचना, अथवा विना आज्ञा प्राप्त किये कोर्ट के स्टाम्प आदि बेचना, या सरकारी हासिल लगान दिये विना माल लाना, लेजाना आदि, यद्वा जिस देशसे जिस चीजके मगाने की मनाई है, उस देश से उस चीजको मँगाना, इत्यादि सब विरुद्ध राज्यातिक्रम है । अतएव संक्षेपमें इतना कहना ही पर्याप्त है, कि जिस विषयमें राज्य विरुद्ध है, वह सभी कार्य स्तेययुक्त समझना चाहिये । कम ज्यादः तोलेना, या नापना हीनाधिकमानोन्मान नामका अतीचार है । झूठी तराजूसे तोलना, अथवा डंडी मारना या लेनेमें ज्यादः तोल लेना, और देते समय कम तोलकर देना, लेने के दूसरे - ज्यादः और देनेके दूसरे कम बाँट रखना, इसी तरह पाली आदि माप झूठा यूनाधिक रखना और उनसे देन लेन करना, अथवा धोखा देकर खरीद विक्री करना, अथवा अधिक दिन बताकर या और कोई घोखा देकर व्याज वगैरह बढ़ा लेना, इत्यादि सब हीनाधिकमानोन्मान नामका अतीचार है । प्रतिरूपकव्यवहार नाम उसका है, कि सोना चांदी आदि द्रव्यों में उसके समान वस्तुको मिला देना, अथवा नकली चीजको घोखा देकर असलीकी तरह बेंचना । जैसे जो चीज सोनेकी नहीं है, उसको कपटप्रयोग के - द्वारा ऊपरसे सोनेकी बनाकर बेचना, या सोनेमें घटिया चीज मिला देना, आदि प्रतिरूपकव्यव - हार नामका अतीचार है । ये पाँचों ही अस्तेयत्रतके अतीचार हैं । इनमें से किसीके भी करनेपर 1 अचौर्यव्रत के अंशका भंग होता है । ३४४ - ब्रह्मचर्य के अतीचारों को गिनाते हैं चतुर्थ व्रत - सूत्र - परविवाहकरणेत्वरपरिगृहीतापरिगृहीतागमनानङ्ग क्रीडातीत्रकामाभिनिवेशाः ॥ २३ ॥ भाष्यम् – परविवाहकरणमित्वरपरिगृहितागमनमपरिगृहीतागमनमनङ्गक्रीडा तीव्र कामाभिनिवेश इत्येते पञ्च ब्रह्मचर्यव्रतस्यातिचारा भवन्ति ॥ अर्थ — परविवाह करण - दूसरोंके लड़के लड़कियोंका अथवा जिनका हमको कोई अधिकार नहीं है, उनका विवाह करना कराना, आदि ब्रह्मचर्यव्रत का पहला अतीचार है । विवाहिता व्यभिचारिणीसे गमन करना इत्वरपरिगृहीतागमन नामका अतीचार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001680
Book TitleSabhasyatattvarthadhigamsutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorKhubchand Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1932
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy