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सूत्र २३-२४ ।] सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् । है । व्यभिचारिणी अविवाहिता-कुमारी अथवा वेश्या आदिसे गमन करना अपरिगृहीतागमन नामका अतीचार है । काम सेवन करनेके जो अङ्ग हैं, उनके सिवाय अन्य अंगोंमें अथवा कृत्रिम अंगोंके द्वारा जो क्रीडा करना, या हस्तक्रिया आदि करना, अनङ्गक्रीडा, नामका अतीचार है । तीव्र कामवासनाका होना-अपनी स्त्री आदिमें भी अत्यन्त कामासक्ति रखना और उसके लिये कामवर्धक प्रयोग करना आदि तीव्र कामाभिनिवेश नामका अतीचार है । इस प्रकार ब्रह्मचर्यव्रतके पाँच अतीचार हैं।
परिग्रह परिमाण व्रतके अतीचारोंको बताते हैं:
सूत्र-क्षेत्रवास्तुहिरण्यसुवर्णधनधान्यदासीदासकुप्यप्रमाणातिक्रमाः ॥ २४ ॥
भाष्यम्-क्षेत्रवास्तुप्रमाणातिक्रमः हिरण्यसुवर्णप्रमाणातिक्रमः धनधान्यप्रमाणातिक्रमः दासीदासप्रमाणातिक्रमः कुप्यप्रमाणातिकम इत्येते पञ्चेच्छापरिमाणव्रतस्यातिचारा भवन्ति ॥ __ अर्थ-क्षेत्र-खेत या जमीन और वास्तु-गृहके प्रमाणका उल्लंघन करना, हिरण्यसुवर्ण-आदिके प्रमाणका अतिक्रम करना, धन-गौ आदिक पशु तथा धान्य-गेहूं चावल आदि खाद्य सामग्रीके प्रमाणका उलंघन करना, दासी और दास-टहलनी आदि तथा नौकरोंके प्रमाणका अतिक्रम करना, इसी प्रकार कुप्य-वर्तन वस्त्र या अन्य फुटकर वस्तुओंके प्रमाणका उल्लंघन करना, ये क्रमसे पाँच इच्छापरिमाण-परिग्रहप्रमाण-अपरिग्रहवतके अतीचार हैं।
भावार्थ-इन विषयोंका जितना प्रमाण किया था, उसको रागके वश होकर अधिक कर लेना-बढ़ा लेना, अथवा उसी तरहका कोई अन्य प्रयत्न करना अतीचार है । जैसे कि किसीने क्षेत्रका प्रमाण १०० बीघा किया था, पीछे उसका प्रमाण १२५ बीघा कर लेना । अथवा अपनी कम उपजाऊ भामको बदलकर अधिक उपजाऊ भमि ले लेना । यद्वा किसीने ४ खेतका प्रमाण किया। प्रमाण करते समय ४ खेत ८० बीघा थे । पीछे उसने १५० बीघाके ४ खेत बना लिये। इसी तरह गृहके विषयमें समझना चाहिये । यह क्षेत्रवास्तु प्रमाणातिकम नामका पहला अतीचार है । इसी तरह शेष चार अतीचारोंके विषयमें भी घटित कर लेना चाहिये। इन पाँचों ही विषयमें व्रतकी भंगाभंग प्रवृत्ति पाई जाती है, अतएव इनको अतीचार कहा है । ' अणुव्रतोंके अतीचारोंको बताकर क्रमानुसार सप्तशालके अतीचारोंको भी बतानेके लिये उनमें सबसे पहले दिखतके अतीचारोंको गिनाते हैं:
सूत्र-ऊर्ध्वाधस्तिर्यग्व्यतिक्रमक्षेत्रवृद्धिस्मृत्यन्तर्धानानि॥२५
भाष्यम्-ऊर्ध्वव्यतिक्रमः, अधोव्यतिक्रमः, तिर्यग्न्यतिक्रमः, क्षेत्रवृद्धिः, स्मृत्यन्तर्धानमित्येते पञ्च दिग्बतस्यातिचारा भवन्ति । स्मृत्यन्तर्धानं नाम स्मृतेभ्रंशोऽन्तर्धानमिति ॥
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