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रायचन्द्र जैनशास्त्रमालायास
[ सप्तमोऽध्यायः
रोककर रखा जाता है, यद्वा तोता मैना आदि पक्षियोंको पिंजड़े में बंद करके रक्खा जाता है । जिससे प्राणीको पीड़ा हो, उसको वध कहते हैं। जैसे कि चाबुकसे या बेंत से किसीको प्रीटना । वधका अर्थ यहाँपर प्राणापहार नहीं है । क्योंकि ऐसी अवस्था में वध अतीचार न होकर अनाचार हो जायगा । शरीर के किसी अंग या उपांगको शरीर से पृथक करनेको छेद कहते हैं । जैसे कि वृक्ष की छाल उपाट ली जाती है । इस अतीचारसे अभिप्राय केवल वृक्षकी छाल उपाटने का ही नहीं समझना, बहुत से लोग कुत्ते की पूँछ कान या घोडेकी पूँछ कटवा देते हैं, ये भी छेद नामका ही अतीचार है । अतिभारारोपण शब्दका अर्थ है, न्याय्य - भारसे अधिक बोझा लादना । जैसे कि इक्का आदिमें अधिक सवारियोंका बैठना । समयपर खानेको अन्न, पीनेको पानी न देना अन्नपाननिरोध नामका अतीचार है । इन पाँचोंको अहिंसाणुव्रतका अतीचार इसलिये कहा है, कि इनके करते हुए अहिंसाणुव्रतका सर्वथा भंग नहीं होता । क्रोधादि कषायके वश होकर इन क्रियाओंको करते हुए भी व्रतकी रक्षाका भी ध्यान रखता है । तथा अन्तरङ्ग और बाह्यमें क्रिया करनेमें भी इतनी सावधानी रखता है, कि कहीं मेरा व्रत भंग न हो जाय । यदि व्रतरक्षाकी अपेक्षाको छोड़कर और प्राणापहारके लिये ही इन क्रियाओंको करे, तो इन्हीं क्रियाओंको भंग अथवा अनाचार भी कहा जा सकता है ।
सत्याणुतके अतीचारोंको गिनाते हैं:
सूत्र - - मिथ्योपदेशरहस्याभ्याख्यान कूटलेखक्रियान्यासापहारसाकारमन्त्रभेदाः ॥ २१ ॥
भाष्यम् - एते पञ्च मिथ्योपदेशादयः सत्यवचनस्यातिचारा भवन्ति । तत्र मिथ्योपदेशो नाम प्रमत्तवचनमयथार्थवचनोपदेशो विवादेष्वतिसंधानोपदेश इत्येवमादिः । रहस्याभ्याख्यानं नाम स्त्रीपुंसयोः परस्परेणान्यस्य वा रागसंयुक्तं हास्यक्रीडासङ्गादिभी रहस्येनाभिशंसनम् । कूटलेखक्रिया लोकप्रतीता । न्यासापहारो विस्मरणकृतपरनिक्षेपग्रहणम् । साकारमन्त्रभेदः पैशुन्यं गुह्यमन्त्रभेदश्च ॥
अर्थ — इस सूत्र में गिनाये गये मिथ्योपदेशादि पाँच सत्याणुत्रतके अतीचार हैं । प्रमादयुक्त वचन बोलना, अयथार्थ वस्तुके निरूपण करनेवाले वचन कहना, विवाद के समय अतिसंधान करना इत्यादि, ये सब मिथ्योपदेश हैं । दूसरोंको ऐसा करने के लिये उपदेश देना भी मिथ्योदेश है | स्त्री पुरुष अथवा अन्य कोई व्यक्ति परस्पर में रहस्य - क्रिया कर रहे हों, तो उसका रागयुक्त होकर हास्य क्रीड़ा सङ्गादिके द्वारा रहस्य क्रियारूप से प्रकट कर देना, रहस्याभ्याख्यान नामका अतीचार है । कुटलेखक्रिया शब्दका अर्थ लोकमें प्रसिद्ध है । जैसे कि झूठा जमाखर्च करना, जाली तमस्मुख - टीप वगैरः लिखा लेना, किसीकी झूठी बुराई करना, छापना, इत्यादि । भुलसे रह जानेवाली दूसरेकी धरोहर को ग्रहण कर लेना, न्यासापहार नामका अती
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