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________________ सूत्र १८-१९-२० ।] सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् । प्रकृति सम्यक्त्वकी घातक हैं। इनका उपशम क्षय क्षयोपशम होनेपर क्रमसे औपशमिक क्षायिक क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन प्रकट हुआ करता है । औपशमिक और क्षायिकसम्यग्दर्शनके होनेपर प्रतिपक्षी कर्मका अंशमात्र भी उदय नहीं हुआ करता । किन्तु क्षायोपशमिकमें सम्यक्त्वप्रकृतिका उदय रहा करता है। अतएव उसके शंका आदिक दोष-अतीचार भी लगते हैंसम्यग्दर्शनका अंशतः भंग हो जाया करता है । यह सम्यग्दर्शन चौथे गुणस्थानसे लेकर सातवें तक रहा करता है। शंका आदि अतीचारोंका भी अर्थ अतत्त्व श्रद्धानके सम्बन्धको लेकर ही करना चाहिये। - पदार्थों में शंका दो कारणोंसे हुआ करती है-एक तो ज्ञानावरणकर्मके उदयसे दूसरी दर्शनमोहके उदयसे । जो दर्शनमोहके उदयसे शंका होती है, वह सम्यग्दर्शनका अतीचार . है। इसी प्रकार काङ्क्षा आदिके विषयमें भी घटित कर लेना चाहिये । ... इस तरह सम्यग्दर्शनके अतीचारोंको बताकर क्रमसे पाँच अहिंसादिक व्रत और सात शीलके भी अतीचारोंकी संख्याको बतानेके लिये सूत्र कहते हैं: सूत्र-व्रतशीलेषु पञ्च पञ्च यथाक्रमम् ॥ १९ ॥ भाष्यम्-व्रतेषु पञ्चसु शीलेषु च सप्तसु पञ्च पश्चातीचारा भवन्ति यथाक्रममिति ऊर्च यद्वक्ष्यामः।-तद्यथा: अर्थः----अहिंसा आदि पाँच व्रत और दिवत आदि सप्तशील इनके विषयमें भी इसी प्रकार क्रमसे पाँच पाँच अतीचार हुआ करते हैं । इन अतीचारोंका हम आगे चलकर क्रमसे वर्णन करेंगे । यथा प्रथम अहिंसा व्रतके अतीचारोंको बताने लिये सूत्र कहते हैं: सूत्र-बन्धवधविच्छेदातिभारारोपणानपाननिरोधाः ॥२०॥ भाष्यम्--सस्थावराणां जीवानां बन्धवधौ त्वक्छेदः काष्ठादीनां पुरुषहस्त्यश्वगोमहिषादीनां चातिभारारोपणं तेषामेव चान्नपाननिरोधः अहिंसाव्रतस्यातिचारा भवन्ति॥ अर्थ-त्रस और स्थावर जीवोंका बन्ध तथा वध करना, त्वचाका छेदन-वृक्षकी छाल • आदिका उपाटना, पुरुष हाथी घोड़ा बैल भैंसा आदिके ऊपर प्रमाणसे ज्याद:-जितना वजन उनमें लेजानेकी शक्ति है, उससे अधिक लादना, और उन्हीके-पुरुष पशु आदिके अन्नपानका निरोध कर देना-समयपर उनको खानेको या पीनेको नहीं देना-अथवा कम देना, ये पाँच अहिंसा व्रतके अतीचार हैं। भावार्थ-अभिमत स्थानमें जिसके निमित्तसे गमन न कर सके, उसको बंध कहते हैं। जैसे कि 'गौ भैंस घोड़ा हाथी आदिको बाँधकर रक्खा जाता है, अथवा बकरी वगैरहको बाड़ेमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001680
Book TitleSabhasyatattvarthadhigamsutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorKhubchand Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1932
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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