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सूत्र ३।] सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् ।
३२१ अनुवीचिभाषण-क्रोधका त्याग, लोभका त्याग, निर्भयता, और हास्यका परित्याग, ये पाँच सत्यवचन व्रतकी भावनाएं हैं । शास्त्रोक्त और व्यवहारसे अविरुद्ध वचन बोलनेको अनुवीचिभाषण कहते हैं। बाकी चारोंका अर्थ स्पष्ट है। क्रोध लोभ भय और हास्यके निमित्तसे असत्य भाषा बोलनेमें प्रायः आती है। अतएव इनका त्याग करनेसे सत्य व्रत स्थिर रहता है।
निरवद्य–हिंसा आदिसे अनुत्पन्न या निर्दोष अनिंद्य पदार्थका ही ग्रहण करना, अथवा उसीकी याचना करना, निरन्तर उसी प्रकारसे ग्रहण याचन करना, हमारे लिये इतना ही पर्याप्त है, ऐसा समझकर उतने ही पदार्थको ग्रहण करना अथवा याचना करके धारण करना, जो अपने सधर्मा हैं, उन्हींसे याचना करना और उन्हींके पदार्थको ग्रहण करना, अनुज्ञास्वीकारता प्राप्त होजानेपर ही पान-भोजन करना-दाताने जिस वस्तुकी आज्ञा दे दी है, उसीका ग्रहण करना, ये पाँच अचौर्यव्रतकी भावनाएं हैं। इनका पालन करनेसे अचौर्य व्रत स्थिर रहता है।
स्त्री पशु और नपुंसक इनका संसर्ग जिसमें पाया जाता है, ऐसे शयन आसनका त्याग करना । अर्थात् स्त्री आदिक जिनपर या जहाँपर सोते उठते बैठते हैं, उन वस्त्रोंपर या शय्या आदिपर नहीं बैठना चाहिए । रागपूर्वक स्त्रियोंकी कथा नहीं करना-स्त्रीविकथाका परित्याग करना । स्त्रियोंके मनोहर अङ्ग उपाङ्गोंको अथवा कटाक्षपातादि विकारोंको नहीं देखना-रागके वशीभूत होकर स्त्रियोंकी तरफ दृष्टि नहीं डालना । पहले जो रतिसंभोग आदि किये थे, उनका स्मरण न करना । गरिष्ठ तथा कामोद्दीपक पदार्थोंका या रसादिकका सेवन न करना । ये पाँच ब्रह्मचर्य व्रतकी भावनायें हैं। इनका निरन्तर पालन करनेसे चतुर्थ-ब्रह्मचर्य व्रत स्थिर रहता है ।।
पाँच इन्द्रियोंके विषय भी पाँच हैं-स्पर्श रस गन्ध वर्ण और शब्द। पाँचों ही दो दो प्रकारके हुआ करते हैं-मनोज्ञ और अमनोज्ञ । मनोज्ञ विषयोंकी प्राप्तिके लिये चिन्तवन न करना अथवा प्राप्त हो जानेपर उनकी गृद्धि न करना। तथा अमनोज्ञ विषयोंकी प्राप्तिके विषय में द्वेष नहीं करना । ये पाँच अपरिग्रह व्रतकी भावनाएं हैं। इनके निरन्तर चिन्तन करनेसे परिग्रहत्याग व्रत स्थिर रहा करता है।
इस प्रकार पाँचो व्रतोंकी क्रमसे ये पाँच भावनाएं हैं, जिनका कि पुनः पुनः भावनं करमेसे ये व्रत स्थिर रहा करते हैं । ये एक एक व्रतकी विशेष विशेष भावनाएं हैं। इनके सिवाय. सब व्रतोंकी सामान्य भावनाएं भी हैं या नहीं ! इस शंकाको दूर करनेके अभिप्रायसे और अग्रिम सूत्रकी उत्थानिका प्रकट करनेके लिये भाष्यकार कहते हैं:
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