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________________ ३२० रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् [ सप्तमोऽध्यायः भावार्थ-एकेन्द्रिय स्थावर जीव और त्रस जीवोंकी प्रयोजनके विना हिंसा न करना आदि, अथवा हिंसा आदिके सूक्ष्म भेदोंको छोड़कर बाकी स्थूल भेदोंका परित्याग करना अणुव्रत है । यह व्रत गृहस्थ श्रावकके हुआ करता है, और इन पापोंके सभी भंगोंका-सभी सूक्ष्म स्थूल भेदोंका परित्याग करना महाव्रत कहा जाता है। यह गृहनिवृत्त मुनियोंके हुआ करता है। इन व्रतोंके धारण कर लेनेपर भी अनभ्यस्त जीव उनसे च्युत हो सकता है । अतएव उनकी स्थिरताका क्या उपाय है, सो बतानेके लिये सूत्र कहते हैं सूत्रम्-तत्स्थैयाथ भावनाः पञ्च पञ्च ॥३॥ भाष्यम्-तस्य पञ्चविधस्य व्रतस्य स्थैयार्थमेकैकस्य पञ्च पञ्च भावना भवन्ति । तद्यथा-अहिंसायास्तावदीर्यासमितिर्मनोगुप्तिरेषणासमितिरादाननिक्षेपणसमितिरालोकितपानभोजनामिति ॥ सत्यवचनस्यानुवीचिभाषणं क्रोधप्रत्यारव्यानं लोभप्रत्यारव्यानमभीरुत्वं हास्यप्रत्यारव्यानमिति ।। अस्तेयस्यानुवीच्यवग्रहयाचनमभीक्ष्णावग्रहयाचनमेतावदित्यवनहावधारणं समानधार्मिकेभ्योऽवग्रहयाचनमनुज्ञापितपानभोजनमिति ॥ ब्रह्मचर्यस्य स्त्रीपशुषण्डकसंशक्तशयनासनवर्जनं रागसंयुक्तस्त्रीकथावर्जनं स्त्रीणां मनोहरेन्द्रियावलोकनवर्जन पूर्वरतानुस्मरणवर्जनं प्रणीतरसभोजनवर्जनामति ॥ आकिञ्चनस्य पञ्चानामिन्द्रियार्थानां स्पर्शरसगन्धवर्णशब्दानां मनोज्ञानां प्राप्तौ गार्यवर्जनममनोज्ञानां प्राप्तौ द्वेषवर्जनमिति ॥ ___अर्थ-ऊपर लिखे अनुसार पाँच पापोंका त्यागरूप व्रत भी पाँच प्रकारका ही है । अहिंसा सत्य अचौर्य ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह । इन व्रतों से प्रत्येक व्रतकी स्थिरताके लिये पाँच पाँच प्रकारकी भावनाएं हैं, जिनके कि निमित्तसे ये व्रत स्थिर रह सकते, या रहा करते हैं। वे इस प्रकार हैं ईर्यासमिति, मनोगुप्ति, एषणासमिति, आदाननिक्षेपणसमिति, और आलोकितपान भोजन, ये पाँच अहिंसा व्रतकी भावनाएं हैं । अपने शरीरप्रमाण ३॥ हाथ भूमिको देखकर जिससे कि किसी भी जीवकी विराधना न हो, चलनेको ईर्यासमिति कहते हैं। मनोयोगके रोकनेको अथवा रौद्रध्यानादि दुष्ट विचारोंके छोड़नेको मनोगुप्ति कहते हैं। शास्त्रोक्त भोजनकी शुद्धिके पालन करनेको एषणासमिति कहते हैं । देखकर और शोधकर किसी भी वस्तुके उठाने और रखनेको आदाननिक्षेपणसमिति कहते हैं । सूर्यके प्रकाशमें योग्य समयपर दृष्टि से देख शोधकर भोजन पान करनेको आलोकितपान भोजन कहते हैं । इन पाँचोंका पालन करनेसे अहिंसा व्रत स्थिर रहता है। १--मगुज्जो उवओगालंबणसुद्धीहिं इरियदो मुणिणो । सुत्ताणुवीचिभणिया इरियासमिदो पवयणम्हि ॥ अथवास्यादीर्यासमितिः श्रुतार्थविदुषो देशान्तरप्रेप्सतः, श्रेयःसाधनसिद्धये नियमिनः कामं जनैर्वाहित । मार्गे कौक्कुटिकेऽस्य भास्करकरस्पृष्टे दिवा गच्छतः, कारुण्येन शनैः पदानि ददतः पातुं प्रयात्यङ्गिनः ॥ २---विहाय सर्वसंकल्पान् रागद्वेषावलम्बितान् । स्वाधीनं कुर्नतश्चेतः समत्त्वे सुप्रतिष्ठितम् ॥ सिद्धान्तसूत्रविन्यासे शश्वत्प्रेरयतोऽथवा, भवत्यविकला नाम मनोगुप्तिर्मनीषिणः ॥ ३-दिगम्बर -सम्प्रदायमें एषणासमिति के बदले वागगुप्ति मानी है। भैश्य- शुद्धिको अचौर्यव्रतकी भावनाओंमें गिनाया है ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001680
Book TitleSabhasyatattvarthadhigamsutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorKhubchand Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1932
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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