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सूत्र ९-१० । ]
सभाप्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् ।
३०७
सूत्र -- निर्वर्तनानिक्षेप संयोगनिसर्गादिचतुर्द्वित्रिभेदाः परम् ||१०||
भाष्यम् – परमिति सूत्रक्रमप्रामाण्यादजीवाधिकरणमाह । तत्समासतञ्चतुर्विधम् । तद्यथा - निर्वर्तना निक्षेपः संयोगो निसर्ग इति । तत्र निर्वर्तनाधिकरणं द्विविधम् । -मूलगुणनिर्वर्तनाधिकरणमुत्तरगुणनिवर्तनाधिकरणं च । तत्र मूलगुणनिर्वर्तनाः पञ्च - शरीराणि वाङ्मनःप्राणापानाञ्च । उत्तरगुणनिवर्तना काष्ठपुस्तचित्रकर्मादीनि । निक्षेपाधिकरणं चतुर्विधम् । तद्यथा - अप्रत्यवेक्षितनिक्षेपाधिकरणं दुःप्रमार्जितनिःक्षेपाधिकरणं सहसानिक्षेपाधिकरणमनाभोगनिक्षेपाधिकरणमिति । संयोगाधिकरणं द्विविधम् । भक्तपानसंयोजनाधिकरणपकरणसंयोजनाधिकरणं च । निसर्गाधिकरणं त्रिविधम् । कायनिसर्गाधिकरणं वानसर्गाधिकरणं मनोनिसर्गाधिकरणमिति ॥
अर्थ — इस सूत्र में पर शब्द जो आया है, वह उक्त सूत्र (अ० ६ सूत्र ८) में पठित पाठक्रमके प्रामाण्यसे क्रमानुसार अजीवाधिकरणको बताता है । अतएव संक्षेपसे उस अजीवाधिकरण ४ भेद हैं । यथा - निर्वर्तना निक्षेप संयोग और निसर्ग । इनमें से पहले निर्वर्तनाधिकरण के दो भेद हैं- मूलगुणनिर्वर्तनाधिकरण और उत्तरगुणनिर्वर्तनाधिकरण । इनमें से मूलगुणनिर्वर्तना पाँच प्रकारकी है - शरीर वचन मन प्राण और अपान । उत्तरगुणनिर्वर्तना काष्ठ पुस्त चित्रकर्म आदि अनेक प्रकारकी है । निक्षेपाधिकरणके चार भेद हैं । यथा अप्रत्यवेक्षित निक्षेपाधिकरण दुःप्रमार्जितनिक्षेपाधिकरण सहसानिक्षेपाधिकरण और अनाभोगनिक्षेपाधिकरण । संयोगाधिकरण दो प्रकारका है | भक्तपानसंयोजनाधिकरण और उपकरणसंयोजनाधिकरण । निसर्गाधिकरणके तीन भेद हैं- कायनिसर्गाधिकरण वा निसर्गाधिकरण और मनोनिसर्गाधिकरण ।
भावार्थ - निर्वर्तना शब्दका अर्थ रचना करना अथवा उत्पन्न करना है । शरीर मन वचन और श्वासोच्छ्रासके उत्पन्न करनेको मूलगुण निर्वर्तना कहते हैं । काष्ठपर किसी मनुष्यादिके आकार के उकेरनेको या मिट्टी पत्थर आदिकी मूर्ति बनानेको या वस्त्रादिके ऊपर चित्र खींचनेको उत्तरगुण निर्वर्तना कहते हैं । निक्षेप शब्दका अर्थ रखना है, विना देखे ही किसी वस्तु के छोड़ देने को अप्रत्यवेक्षितनिक्षेप कहते हैं । दुष्टतासे अथवा यत्नाचारको छोड़कर उपकरणादिके रखने या डाल देने आदिको दुःप्रमार्जितनिक्षेप कहते हैं । शीघ्रता वश शरीर उपकरण या मलादिके सहसा पृथिवी आदिको बिना देखे शोधे ही छोड़ देनेको सहसानिक्षेप कहते हैं । जल्दी न रहते हुए भी यहाँ कोई जीव जन्तु है, या नहीं इसका विचार न कर उक्त शरीरादिको विना देखी शोधी भूमिपर रख देनेको अनाभोगनिक्षेप कहते हैं । किन्हीं दो वस्तुओं के जोड़ने अथवा परस्पर में मिलानेको संयोग कहते हैं । खाने पीनेकी ठंडी चीजोंमें और भी गरम दूसरी चीजों के मिलानेको अथवा गरममें ठंडी मिलानेको भक्तपानसंयोजन कहते हैं । शीत
१–निर्वर्तनाके दो भेद इस तरह से भी हैं - १ - देह दुःप्रयुक्त निर्वर्तना ( शरीर से कुचेष्टा उत्पन्न करना ), २—उपकरणनिर्वर्तना ( हिंसा के साधनभूत शस्त्रादिको तयार करना ) ।
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