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सूत्र ८-९।] सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् । है, परन्तु इससे इनका विशेष स्वरूप समझमें नहीं आता, अतएव क्रमानुसार दसरे भावाधिकरण या जीवाधिकरणका जो स्वरूप अस्पष्ट है, पहले उसको बतानेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं
सूत्र--आद्यंसंरम्भसमारम्भारम्भयोगकृतकारितानुमतकषायविशेषैस्त्रिस्त्रिस्त्रिश्चतुश्चैकशः ॥९॥
भाष्यम् --आधमितिसूत्रक्रमप्रामाण्याज्जीवाधिकरणमाह । तत्समासतस्त्रिविधम् ।संरम्भः, समारस्भः, आरम्भ इति । एतत्पनरकशःकायवाड.मनोयोगविशेषात त्रिविधं भवति तद्यथा-कायसंरम्भः, वाकसंरम्भः. मनःसंरम्भः, कायसमारम्भः, वाकसमारम्भः. मनःसमारम्भः. कायारम्भः. वागारम्भः. मनआरम्भ इति । एतदप्येकशः कृतकारितानुमतविशेषात् त्रिविधं भवति । तद्यथा-कृतकायसंरम्भः, कारितकायसंरम्भः, अनुमतकायसंरम्भः, कृतवाक्संरम्भः, कारितवाक्संरम्भः, अनुमतवाक्संरम्भः, कृतमनःसंरम्भः, कारितमनःसंरम्भः अनुमतमनःसंरम्भः, एवं समारम्भारम्भावपि । तदपि पुनरेकशः कषायविशेषाच्चतुर्विधम् ॥ तद्यथा-क्रोधकृतकायसंरम्भः, मानकृतकायसंरम्भः, मायाकृतकायसंरम्भः, लोभकृतकायसं. रम्भा, क्रोधकारितकायसंरम्भः, मानकारितकायसंरम्भः, मायाकारितकायसंरम्भः, लोभकारितकायसंरम्भः, क्रोधानुमतकायसंरम्भः, मानानुमतकायसंरम्भः, मायानुमतकायसंरम्भः, लोभानुमतकायसंरम्भः, एवं वाङमनोयोगाभ्यामपि वक्तव्यम् । तथासमारम्भारम्भौ । तदेवं जीवाधिकरणं समासेनैकशः षट्त्रिंशदूविकल्पं भवति। त्रिविधमप्यष्टोत्तरशतविकल्पं भवतीति॥
संरम्भः सकषायः, परितापनया भवेत्समारम्भः।
आरम्भः प्राणिवधः, त्रिविधो योगस्ततो ज्ञेयः॥ __ अर्थ--पहले सत्रमें अधिकरणके जो दो भेद गिनाये हैं, उनमें पहला भेद जीवाधिकरण है । अतएव इस सूत्रमें आद्य शब्दसे उसीको समझना चाहिये । क्योंकि सत्र में पठित क्रमके प्रामाण्यसे उसीका ग्रहण हो सकता है । जीवाधिकरणके एकसौ आठ भेद हैं। वह इस प्रकारसे कि-संक्षेपसे मूलमें उसके तीन भेद हैं-संरम्भ समारम्भ और आरम्भ । इनमें भी प्रत्येकके योगकी अपेक्षासे-कायिक वाचिक और मानसिक योगकी विशेषतासे तीन तीन भेद होते हैं। यथा कायसंरम्भ वाकसंरम्भ मनःसंरम्भ कायसमारम्भ वाक्समारम्भ मनःसमारम्भ कायारम्भ वागारम्भ मनआरम्भ । इनमेंसे भी प्रत्येकके कृत करित और अनुमोदनाकी विशेषतासे तीन तीन भेद होते हैं । यथा कृतकायसंरम्भ कारितकायसंरम्भ अनुमतकायसंरम्भ कृतवाक्संरम्भ कारितवाक्संरम्भ अनुमतवाक्संरम्भ कृतमनःसंरम्भ कारितमनःसंरम्भ अनुमतमनःसंरम्भ । इस प्रकार संरम्भके ९ भेद हैं । इसी तरह समारम्भ और आरम्भके भी नौ नौ भेद समझ लेने चाहिये। इनमें भी प्रत्येकके क्रोधादि चार कषायोंकी विशेषतासे चार चार भेद होते हैं। यथा-क्रोधकृतकायसंरम्भ मायाकृतकायसंरम्भ मानकृतकायसंरम्भ लोभकृतकायसंरम्भ क्रोधकारित. कायसरम्भ मानकारितकायसंरम्भ मायाकारितकायसंरम्भ लोभकारितकायसंरम्भ क्रोधानुमत
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