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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
[ पञ्चमोऽध्यायः
करनेवाला यदि एक ही सूत्र कर दिया जाता, तो क्या हानि थी ? अथवा एक सूत्र न करके पृथक् पृथक् सूत्र करनेमें क्या लाभ है ? उत्तर - स्पर्शादिक गुण परमाणुओं में और स्कन्धों में दोनोंमें ही रहा करते हैं, परन्तु वे अनेक प्रकारके परिणमनोंकी उत्पत्तिके अनुसार ही प्रादु• भूत हुआ करते हैं । किन्तु शब्दादिक स्कन्धों में ही रहा करते हैं, परमाणुओं में नहीं रहते । तथा इनकी प्रादुर्भूति अनेक निमित्तोंसे हुआ करती है । अर्थात् शब्दादिक द्वयणुकादिक स्कन्धोंमें न होकर अनन्त परमाणुओं के स्कन्धों में ही रहा करते हैं, और अनेक निमित्तोंसे उनकी प्रादुर्भूति हुआ करती है । इस भेदको दिखानेके लिये ही पृथग्योग किया हैभिन्न भिन्न दो सूत्र किये हैं । उक्त सूत्रों में जिनका वर्णन किया गया है, वे सभी पुद्गल संक्षेपमें दो प्रकार हैं । वे दो भेद कौनसे हैं, सो बतानेके लिये 1 करते हैं:सूत्र
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सूत्र -- अणवः स्कन्धाश्च ॥ २५ ॥
भाष्यम् - उक्तं च- “ कारणमेव तदन्त्य, सूक्ष्मो नित्यश्च भवति परमाणुः । एकरसगन्धघर्णो द्विःस्पर्शः कार्यालिङ्गश्च ॥” इति तत्राणवोऽबद्धाः, स्कन्धास्तु बद्धा एवेति ॥ अर्थ -! — पुद्गल दो प्रकारके हैं-अणु और स्कन्ध | अणुका लक्षण पूर्वाचार्योंने इस प्रकार किया है - " कारणमेव तदन्त्यम् " इत्यादि । अर्थात् वस्तु दो भागों में विभक्त हो सकती है - कारणरूप में और कार्यरूपमें । जिसके होनेपर ही किसीकी उत्पत्ति हो, और न होनेपर नहीं ही हो, उसको कारण कहते हैं, और जो इसके विपरीत है, उसको कार्य कहते हैं । तदनुसार परमाणु कारणरूप ही है; क्योंकि उसके होनेपर ही स्कन्धों की उत्पत्ति होती है, अन्यथा नहीं । यदि परमाणु न हों, तो स्कन्ध-रचना नहीं हो सकती है । किन्तु परमाणुसे छोटा और भाग नहीं होता । अतएव परमाणु कारण द्रव्य ही है, और द्वचणुक से लेकर अचित्त महास्कन्ध पर्यन्त जितने भेद हैं, वे सब कार्य द्रव्य हैं । परमाणु सबसे अन्त्य है । परमाणु के अनन्तर और कोई भेद नहीं होता । वह इतना सूक्ष्म है, कि हम लोग उसको आगमके द्वारा ही जान सकते हैं । उसके आकारका कभी विनाश नहीं होता, न वह स्वयं कभी नष्ट होता है, द्रव्यास्तिकनयकी अपेक्षासे उसका आकार तदवस्थ रहता है, अतएव उसको नित्य माना है, उससे छोटा और कुछ भी नहीं होता, इसलिये उसको परमाणु कहते हैं । उक्त पाँच प्रकारके रसोंमें से कोई भी एक प्रकारका रस, दो प्रकारके गन्ध में से
१ - दिगम्बर - सम्प्रदाय में परमाणुको कार्यरूप भी माना है। क्योंकि स्कन्धों के भेदसे उसकी उत्पत्ति होती है। उससे स्कन्ध होते हैं, इसलिये कारणरूप भी है । यथा - " स्कन्धस्यारम्भका यद्वदणवस्तद्वदेवहि । स्कन्धोऽणूना भिदारम्भनियमस्थान भीक्षणात् ॥ " परमाणूनां कारणद्रव्यत्वनियमादसिद्धमेवेति चेन्न तेषां कार्यत्वस्यापि सिद्धेः ।... नहि स्कन्धस्यारम्भकाः परमाणवो न पुनः परमाणोः स्कन्ध इतिनियमो दृश्यते । तस्यापि भिद्यमानस्य सूक्ष्मद्रव्यजनकत्वदर्शनात् भिद्यमानपर्यन्तस्य परमाणुजनकत्वसिद्धेः || ” ( तत्त्वार्थश्लोकवार्त्तिक) । इस बातको टीकाकार सिद्धसेनगणीने भी स्वीकार किया है। " भेदादणुः " इस सूत्र की टीकामें लिखा है, कि द्रव्यमय और पर्यायनयसे कोई विरोध नहीं है।
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