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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
[ पञ्चमोऽध्यायः
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भी पुद्गलोंका उपकार सिद्ध है । इसके सिवाय तीन प्रकारको आहार जो माना है, वह तो प्राणिमात्र के लिये उपकारक । इसका कारण ? कारण यह है, कि शरीरकी स्थिति रक्षा और वृद्धि तथा बलकी वृद्धि और प्रीति आदि आहारके द्वारा ही सिद्ध हुआ करते हैं । भावार्थ — वास्तव में जीव अमूर्त है, और इसीलिये अदृश्य है । संसारी जीवोंका एक क्षेत्रावगाह कर्मनोकर्मरूप पुद्गल के साथ हो रहा है, और उसके निमित्तसे ही सब कार्य होते हैं । संसारी प्राणियों को सुख दुःखका अनुभव जो होता है, वह भी पुद्गलाश्रित ही है, क्योंकि उनको जो सुख अथवा दुःख होता है वह कर्मजनित और सेन्द्रिय तथा शरीराधीन होता है न कि आत्मसमुत्थ । सुखादिके होनेमें अन्तरङ्ग कारण कर्मोदय और बाह्य कारण नोकर्म तथा तीन प्रकारका आहार प्रभृति है । अतएव सुखादिकमें भी पुद्गल द्रव्यका ही उपकार मानना चाहिये ।
भाष्यम् – अत्राह - गृह्णीमस्तावदूधर्माधर्माकाशपुद्गल जीवद्रव्याणामुपकुर्वन्तीति । अथ जीवानां क उपकार इति ? अत्रोच्यते ।
अर्थ - प्रश्न - धर्म अधर्म आकाश और पुद्गल जीवोंका उपकार करते हैं, यह बात समझे, परन्तु जीव द्रव्य किस तरह उपकार करते हैं ? वे दूसरे जीवोंका ही उपकार करते हैं, या क्या ? अथवा धर्म अधर्म आकाश और पुद्गल निरन्तर पर पदार्थोंका अनुग्रह करते हैं सो समझे । सभी धर्मादिक द्रव्य जीवोंका उपकार करते हैं, धर्म अधर्म और आकाश पुद्गल द्रव्यका उपकार करते हैं, आकाश द्रव्य धर्म अधर्म और पुद्गलका उपकारक है । इस प्रकार ये द्रव्य पर पदार्थों का जो अनुग्रह करते हैं, सो हमारी समझमें आया, परन्तु जीव द्रव्य क्या उपकार करता है सो अभीतक नहीं मालूम हुआ । अतएव उसीको कहिये कि उसका क्या उपकार है ? उत्तरसूत्र - - परस्परोपग्रहो जीवानाम् ॥
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भाष्यम् – परस्परस्य हिताहितोपदेशाभ्यामुपग्रहो जीवानामिति ॥
अर्थ — जीवोंका उपकार परस्पर में - एक दूसरे के लिये हित और अहितका उपदेश देनेके द्वारा हुआ करता है ।
१ - ओज - आहार लोमाहार और प्रक्षेपाहार । जिस तरह घीमें पड़ा हुआ पूआ सब तरफसे घीको खींचता है, उसी प्रकार गत्यन्तरसे गर्भमें आया हुआ जीव अपर्याप्त अवस्था और जन्मकालमें सभी प्रदेशोंके द्वारा शरीर योग्य पुलोंको ग्रहण किया करता है, इसको ओज-आहार कहते हैं । पर्याप्त अवस्था में त्वगिन्द्रियके द्वारा जो ग्रहण होता है, उसको लोमाहार कहते हैं । ग्रास लेकर जो भोजनरूपसे ग्रहण होता है, उसको कवलाहार या प्रक्षेपाहार कहते हैं । दिगम्बर सम्प्रदाय में छह प्रकारका आहार माना है :- नोकर्म आहार, कर्म आहार, कवलाहार, लेप्याहार ओज-आहार, और मानस - आहार । यथा-णोकम्म कम्महारो, कवलाहारो य लेप्पमाहारो । ओजमणोविय कमसो, आहारोछब्विहोणेओ ॥ २- स्थितिका अर्थ अवस्थान, रक्षाका अर्थ बाधक कारणोंकी निवृत्ति वृद्धिका अर्थ आरोहण-बढ़ना है, उपचयका अर्थ मांस मजाका पोषण, वलका अर्थ उत्साह शक्ति, प्राणका अर्थ सामर्थ्य, और प्रीतिका अर्थ मानसिक प्रसन्नता है ।
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