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सूत्र ११-१२-१३-१४ ।] संभाध्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् ।
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भावार्थ -- अवगाह दो प्रकारसे सम्भव हो सकता है- एक तो पुरुषके मनकी तरह, दूसरा दूध पानीकी तरह । इनमें से दूध पानीकासा अवगाह प्रकृतमें अभीष्ट है, यह बात कृत्स्न शब्द के द्वारा बताई है । अथवा जिस प्रकार आत्मा शरीरमें व्याप्त होकर रहता है, उसी प्रकार धर्म अधर्म भी लोकाकाशमें व्याप्त होकर अनादिकालसे रह रहे है । ऐसा कोई भी लोकका प्रदेश नहीं है, जहाँपर धर्म या अधर्म द्रव्य न हो ।
पुल द्रव्यके अवगाहका स्वरूप बताते हैं:
सूत्र - एक प्रदेशादिषु भाज्यः पुद्गलानाम् ॥ १४ ॥
भाष्यम् -- अप्रदेश संख्येया संख्येयानन्तप्रदेशानां
पुद्गलानामेकादिष्वाकाशप्रदेशेषु भाज्योऽवगाहः । भाज्यो विभाष्यो विकल्प्य इत्यनर्थान्तरम् । तद्यथा-- परमाणोरेकस्मिन्नेव प्रदेशे, द्रयणुकस्यैकस्मिन् द्वयोश्च । त्र्यणुकस्यैकस्मिन् द्वयोस्त्रिषु च एवं चतुरणुकादीनां संख्येया संख्येयप्रदेशस्यैकादिषु संख्येयेषु असंख्येयेषु च, अनन्तप्रदेशस्य च ॥
अर्थ - - पुद्गल द्रव्य चार प्रकारके हैं- अप्रदेश, संख्येयप्रदेश, असंख्येयप्रदेश और अनन्तप्रदेश । इनका लोकमें अवगाह जो होता है, सो एकसे लेकर संख्यात अथवा असंख्यात प्रदेशों में यथायोग्य समझ लेना चाहिये। भाज्य विभाष्य और विकल्प्य इन शब्दों का एक ही अर्थ है, कि एकसे लेकर असंख्यात पर्यन्त जितने प्रदेशों के भेद सम्भव हैं, और अप्रदेशसे लेकर अनन्त प्रदेशतक जितने स्कन्धोंके भेद सम्भव हैं, उनका यथायोग्य अवगाह्य अवगाहन समझ लेना चाहिये । यथा - जो परमाणु - अप्रदेश है, उसका अवगाह एक ही प्रदेशमें होता है, क्योंकि वह स्वयं एक प्रदेशरूप ही है। अतएव उसका अवगाह दो आदिक प्रदेशोंमें नहीं हो सकता । द्वयणुकका अवगाह एक प्रदेशमें भी हो सकता है, और दो प्रदेशों में भी हो सकता है । त्र्यणुकका अवगाह एक प्रदेशमें भी हो सकता है, दोमें भी हो सकता है और तीनमें भी हो सकता है । इसी प्रकार चतुरणुकादिके विषय में भी समझ लेना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है, कि जो संख्यात या असंख्यात प्रदेशवाले स्कन्ध हैं, वे एकसे लेकर यथायोग्य संख्यात या असंख्यात प्रदेशों में अवगाहन करते हैं; संख्यात प्रदेशी स्कन्ध असंख्यात प्रदेशोंमें अवगाहन नहीं कर सकता है । अनन्त प्रदेशवाला स्कन्ध एकसे लेकर असंख्यात तक प्रदेशों में आ सकता है । वह अनन्त प्रदेशों में अवगाहन नहीं करता । क्योंकि लोकके प्रदेश असंख्यात ही है न कि अनन्त ।
भावार्थ — पुद्गल द्रव्यमें जो अणु द्रव्य हैं उनका एक ही प्रदेशमें, किन्तु स्कन्धोंका योग्यतानुसार एकसे लेकर असंख्यात तक प्रदेशों में अवगाहन हुआ करता है । इस विषय में यह शंका हो सकती है, कि एक प्रदेशमें संख्यात असंख्यात या अनन्त प्रदेशवाले स्कन्धों का समावेश किस तरह हो सकता है । अथवा लोक जब असंख्यात प्रदेशी ही है, तब उसमें अनन्तानन्त
१ – धातूनामनेकार्थत्वात् । ३३
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