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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् [ चतुर्थोऽध्यायः अधिक-प्रकृष्ट सुखोदयका कारण हुआ करता है । शरीरकी निर्मलता अथवा कान्तिको द्युति, कहते हैं । यह भी नीचेके देवोंसे उपरके देवोंकी अधिक है।
शरीरके वर्णको लेश्या कहते हैं । इसकी विशुद्धि भी ऊपर ऊपर अधिकाधिक है, वैमानिकदेवोंमें लेश्यासम्बन्धी जो नियम है, उसका वर्णन आगे चलकर करेंगे । किन्तु यहाँपर जो लेश्या शब्दका प्रयोग किया है, उसका अभिप्राय विशेष अर्थको बतानेका है । वह यह कि जिन ऊपर नीचेके देवोंमें लेश्याका भेद समान होता है, उनमें भी ऊपरके देवोंकी लेश्याकी विशुद्धि अधिक हुआ करती है । क्योंकि ऊपर ऊपरके देवोंके अशुभ कर्म कृष हो जाया करते हैं, और उनमें शुभ-कर्मोकी बहुलता पाई जाती है ।
___ इन्द्रियोंका और अवधिका विषय भी उपरके देवोंका अधिक अधिक है । दूर ही से अपने इष्ट विषयको ग्रहण कर लेने-देख लेनमें इन्द्रियोंका सामर्थ्य जितना नीचेके देवोंमें है, उससे ऊपरके देवोंमें अधिक है। क्योंकि वे प्रकृष्टतर गुणोंको और अल्पतर संक्लेश परिणामोंको धारण करने वाले हैं । अवधिज्ञानका स्वरूप पहले बताया जा चुका है। वह भी ऊपर ऊपरके देवोंका अधिकाधिक है। सौधर्म और ऐशान कल्पके देव अवधिक विषयकी अपेक्षा रत्नप्रभा पृथिवीतकको देख सकते हैं । तिर्यक्-पूर्वादि दिशाओंकी तरफ असंख्यात लक्ष योजनतक देख सकते हैं। ऊपरको-ऊर्ध्व दिशामें अपने विमान पर्यन्त ही देख सकते हैं । सनत्कुमार और माहेन्द्र स्वर्गके देव शर्करा-दूसरी पृथिवीतक देख सकते हैं । तिर्यक् असंख्यात लक्ष योजन और ऊर्ध्व दिशामें अपने विमान पर्यन्त-विमानके ध्वजदण्ड तक देख सकते हैं । इसी प्रकार शेष-ब्रह्मलोक आदिके देवोंके विषयमें भी क्रमसे समझ लेना चाहिये । अर्थात् ब्रह्मलोक और लान्तक विमानवाले देव बालुकाप्रभा पर्यन्त, शुक्र सहस्रारवाले पङ्कप्रभा पर्यन्त, आनत प्राणत और आरण अच्युतवाले धूमप्रभा पर्यन्त, अधस्तन ग्रैवेयक और मध्यम ग्रैवेयकवाले तमःप्रभा पर्यन्त, और उपरिम ग्रैवेयकवाले महातमःप्रभा पर्यन्त, तथा पाँच अनत्तर विमानोंके देव समस्त लोकनाडीको देख सकते हैं । इस विषयमें इतना और भी समझना चाहिये, कि जिन देवोंके अवधिज्ञानका विषय क्षेत्रकी अपेक्षा समान है, उनमें भी जो ऊपर ऊपरके देव हैं, उनमें उसकी विशुद्धता अधिकाधिक पाई जाती है।
इस प्रकार वैमानिकदेवोंमें जिन विषयोंकी अपेक्षा ऊपर उपर अधिकता है, उनको बताया अब यह बतानेके लिये सूत्र कहते हैं, कि उनमें जिस प्रकार ऊपर ऊपर सुखादि विषयोंकी
१ अर्थात् लोकको नहीं देख सकते, केवल लोकके मध्यमें बनी हुई नाडीके भीतरके विषयको ही देख सकते हैं । लोकके ठीक मध्यमें नीचेसे ऊपर तक १४ राजू ऊँची और एक राजू चौड़ी तथा एक राजू मोटी नाडीको लोकनाड़ी कहते हैं, इसीका नाम त्रसनाडी भी है।
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