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________________ २१२ रायचन्द्र जैनशास्त्रमालायाम् [ चतुर्थोऽध्यायः 1 तदवस्थ बनी हुई है, जिसकी इन्द्रियाँ भी समर्थ हैं, जिसका शरीर किसी प्रकारकी व्याधि से आक्रान्त नहीं है, जो न बाल्य अवस्थाका है और न बृद्ध अवस्थाका, किंतु मध्यम वयको धारण करनेवाला है, जिसका मन भी स्वस्थ है - किसी प्रकार की आधि - चिन्तासे घिरा हुआ नहीं है, ऐसे पुरुष के उच्छ्रास और निःश्वास दोनों के समूहको प्राण कहते हैं । सात प्राणों के समूहको एक स्तोक कहते हैं । सात स्तोक प्रमाण कालको लव कहते हैं । साड़े अड़तीस लक्की एक नाली कही जाती है । दो नालीका एक मुहूर्त, तीस मुहूर्तका एक अहोरात्र, पन्द्रह अहोरात्रका एक पक्ष होता है । ये पक्ष दो प्रकारके हुआ करते हैं, शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष । दोनों पक्षोंके समूहको मास-महीना कहते हैं । दो महीने की एक ऋतु होती है । तीन ऋतुका एक अयन और दो अयनका एक संवत्सर - वर्ष होता है । पाँच वर्षके समूहको युग कहते हैं । वर्ष चन्द्र अभिवर्धित आदि पाँच प्रकारका होता है । उसके अनुसार ही युगके भी पाँच प्रकार समझ लेने चाहिये। वे पाँच नाम इस प्रकार हैं। सौर्य, सवन, चान्द्र, नाक्षत्र, और अभिवर्द्धित । पाँच वर्षके युगमें मध्यमें और अन्तमें मिलकर दो अधिक मास हुआ करते हैं । 9-55 अडस्स अलसस्स य णिरुवहदस् य हवेज जीवस्स । उस्सासाणिस्सासो ऐसो पाणोत्ति आहीदो ॥ ( गो . जीवकाण्ड क्षेपक ) । ऐसे मनुष्यके एक अन्तर्मुहूर्तमें ३७७२ नाड़ी के ठोके लगते हैं । आजकलके डाक्टरों ने भी करीब करीब इतना ही हिसाब माना है । 1 २—जिसमें चन्द्रमाका उदय - काल बढ़ता जाय, उसको शुक्ल पक्ष और जिसमें अन्धकार बढ़ता जाय, उसको कृष्णपक्ष कहते हैं । प्रतिपदासे अमावस्यातक कृष्णपक्ष और उसके बाद प्रतिपदा से पूर्णमासीतक शुक्ल पक्ष होता है, कृष्णपक्ष में अन्धकार बढ़ते बढ़ते अमावस्याको चन्द्रमाका सर्वथा अनुदय हो जाता है, और शुक्ल पक्षमें चन्द्रमाक प्रकाश बढ़ते बढ़ते पूर्णमासीको उसका पूर्ण उदय हो जाता है । ३ - साधारणतया महीना पाँच प्रकार के हैं, सूर्य चन्द्र आदिकी अपेक्षासे । परन्तु देशमें इस विषयका व्यवहार प्रायः दो प्रकारका ही देखने में आता है । कहीं कहीं तो अमावस्याको महीना पूर्ण होता है, अतएव उस तिथिकी जगह ३० का अंक लिखा जाता है । कहीं कहीं पर पूर्ण - मासीको महीना पूर्ण होता है, और इसी लिये उसका नाम पूर्णमासी है । सामान्यसे महीना ३० दिनका ही गिना जाता है, यद्यपि उसमें कुछ कुछ अंतर भी है । ४ - इस हिसाब से वर्षकी छह ऋतु हुआ करती हैं, जिनके कि नाम इस प्रकार हैं – हेमन्त शिशिर वसंत ग्रीष्म वर्षा शरद् । ५ - चन्द्र १ सूर्य २ अभिवर्द्धित ३ सवन ४ और नक्षत्र ५ ये पाँच प्रकारके संवत्सर हैं । इनका प्रमाण क्रमसे इस प्रकार है | - चन्द्रसंतसर में महीनाका प्रमाण २९३ दिनका है । इस हिसाब से वर्ष में बारह महीना के ३५४ ३ दिन होते हैं । यही चन्द्रसंवत्सरका प्रमाण है । ( आजकल मुसलमान प्रायः चन्द्रसम्वत्सर को ही मानते हैं । ) सूर्यसम्वत्सर में महीनाका प्रमाण ३०३ दिन है, इस हिसाब से वर्ष - बारह महीनाके ३६६ दिन होते हैं । यही सौरवर्षका प्रमाण है । अभिवर्द्धित सम्वत्सरमें ३१३४ दिनका महीना और इसी हिसाब से बारह महीना के ३८३रें दिन होते हैं । सवन संवत्सर में महीनाके ३० दिन और बारह महीना के ३६० दिन होते हैं । नक्षत्र सम्वत्सर में महीनाके २७७ दिन और इसी हिसाब से बारह महीना के ३२७७ दिन होते हैं । इस प्रकार पाँचो सम्वत्सर एक साथ प्रवृत्त रहा करते हैं, और अपने अपने समयपर वे पूर्ण हो जाते हैं । पाँच वर्षके युगमें पाँचो ही प्रकार के सम्वत्सर आ जाते हैं । वर्ष के अनुसार ही युगके भी पाँच नाम समझ लेने चाहिये । ६ - पाँच प्रकार के सम्वत्सरों में से अभिवर्द्धित नामके सम्वत्सर में अधिक मास होता है । और अंतमें अभिवर्द्धित सम्वत्सर ही हुआ करता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001680
Book TitleSabhasyatattvarthadhigamsutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorKhubchand Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1932
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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