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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
[ चतुर्थोऽध्यायः
खींचनेमें किसी प्रकारका भारजन्य कष्ट नहीं हुआ करता । क्योंकि कर्मोदयके अनुसार उन्हें स्वयं ही वह कार्य प्रिय है। दूसरे स्वयं गमन करनेवाले सूर्य चन्द्र आदिके विमानोंके नीचे इच्छानुसार वेष धारण करके ये लग जाते और गमन किया करते तथा उनकी गतिमें सहायक हुआ करते हैं । इस प्रकार वाहनोंके निमित्तसे सूर्य चन्द्र आदिकी पुण्यकर्मजनित ऋद्धिकी महत्ता प्रकट हुआ करती है।
सूर्यमण्डलको खींचनेवाले देवोंमेंसे जो पूर्व दिशामें खीचते हैं, वे सिंहका रूप धारण किया करते हैं, दक्षिण दिशामें खींचनेवाले हाथीका रूप धारण करते, पश्चिम दिशामें खींचने वाले बैलका स्वरूप धारण किया करते और उत्तर दिशामें खींचनेवाले वेगवान् घोड़ोंका रूप धारण किया करते हैं । यह सब उसी आभियोग्य नामकर्मका कार्य है, कि जिसका फल अवश्य भोगना ही पड़ता है।
ये सब वाहन-जातिके देव सयमण्डलके सोलह हजार और उतने ही चन्द्रमण्डलके हैं, ग्रह विमानोंके आठ हजार, नक्षत्र विमानोंके चार हजार, और तारा विमानोंके दो हजार कुल वाहन-देव हैं। .. भावार्थ-तीसरे ज्योतिष्क नामक देवनिकायका स्वरूप ऊपर लिखे अनुसार है । इनके सामान्य पाँच ही भेद हैं । सम्पूर्ण ज्योतिष्क इन्हीं भेदोंमें अन्तर्भूत हो जाते हैं । इनके प्रकाश और ताराके क्षेत्रका काष्ठान्तर मण्डलान्तर और चार क्षेत्र आदिका एवं ऋद्धि वैभव आदिका प्रमाण आगमके अनुसार समझ लेना चाहिये । - सर्व सामान्यसे ये दो प्रकारके कहे जा सकते हैं-गतिशील और स्थितिशील । मनुष्यलोकवर्ती पाँचों ही प्रकारके ज्योतिष्क गतिशील हैं, और उसके बाहरके सब स्थितिशील हैं। यद्यपि मनुष्यलोकमें भी कितने ही ज्योतिष्क विमान स्थितिशील-ध्रुव हैं, परन्तु उनकी गौणता होनेसे गणना नहीं की है। जिस प्रकार किसी वैश्यके विवाहकी बरातको देखकर लोकमें कहा जाता है कि " यह वैश्योंकी बरात है।" यद्यपि उस बरातमें वैश्योंके अतिरिक्त ब्राह्मण क्षत्रिय और शद्र भी सम्मिलित रहा करते हैं, परन्तु उनका बाहुल्य और प्राधान्य न रहनेसे परिगणन नहीं किया जाता । इसी प्रकार प्रकृतमें भी समझना चाहिये । सूर्य चन्द्र । आदि प्रायः सभी ज्योतिष्कमण्डलके गतिशील रहनेसे मनुष्यलोकका ज्योतिर्मण्डल गतिशील ही कहा जाता है।
- इसी प्रकार नित्य शब्दके विषयमें समझना चाहिये । यहाँपर नित्य शब्द भी आभीक्ष्ण्यवाची अभीष्ट है । जिस प्रकार लोकमें किसी मनुष्यके लिये कहा जाता है, कि “ यह तो नित्य ऐसा ही करता रहता है ।" यद्यपि वह मनुष्य प्रतिदिन और प्रतिक्षण उसी कामको नहीं किया करता, उसके सिवाय अन्य कार्योंको भी किया करता है । परन्तु प्रायः उसी
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